SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुनि ने उपहास करते हुए विशाखानन्दी को देखा तो भीतर में दबी क्रोध की अग्नि भड़क उठी। करुणानिधान भगवान महावीर दुष्ट ! विशाखानन्दी ! मैं राजपाट छोड़कर साधु बन गया हूँ तब भी तू भूत की तरह मेरे पीछे लगा है ? मेरी सहनशीलता को दुर्बलता मत समझ, मूर्ख ! mamm क्रोध में भर भराये मुनि ने गाय के दोनों सींगों को हाथ से पकड़ा और घुमाकर आकाश में उछाला और गेंद की तरह हाथ में वापस लपक लिया। अपमान से तिलमिलाये विश्वभूति ने उद्घोष किया। यदि मेरे किये हुये तप का कोई फल हो तो अगले जन्म में मैं महान पराक्रमी बलशाली राजा बनकर तुझसे बदला लूँगा। Jain Education International इस प्रकार क्रोध के कारण विश्वभूति ने वर्षों की तपस्या के फल को व्यर्थ कर दिया। विश्वभूति का जीव आयुष्य पूर्ण कर देव बना। For Private Personal Use Only 2003012 विशाखानन्दी सकपका कर भागा। www.jainelibrary.org
SR No.002809
Book TitleBhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 009 010
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandramuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy