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करुणानिधान भगवान महावीर आते-जाते लोगों के सामने मरीचि ताली पीट-पीटकर एकबार मरीचि बीमार हुआ। सेवा के लिए उसने उछलकर अपने कुल गौरव का बखान करने लगा | कपिल नामक राजकुमार को अपना शिष्य बना लिया।
मेरे दादा प्रथम तीर्थंकर हैं। मेरे पिता प्रथम चक्रवर्ती और मैं अन्तिम तीर्थंकर बनूँगा अहा !
ANDIPASHANTDAILURES अहा ! अहा !
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मृत्यु को निकट जानकर मरीचि ने अनशन व्रत कर लिया।
मरीचि भव के बाद भगवान महावीर के जीव ने बारह जन्म लिये। जिसमें छ: भव (जन्म) देवलोक में और छ: भव मनुष्य के किये। मनुष्य भव में वे त्रिदण्डी परिव्राजक बने।
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मरीचि को कुल मद के कारण नीच गोत्र कर्म का बन्ध हुआ। Jain Education International
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