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रत्नपुर नगर में यशोभद्र और शिवा नामक एक समृद्ध दम्पति रहते थे।
स्वर्ण पुरुष
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यों तो सेठ यशोभद्र को कोई कमी नहीं थी, परन्तु पुत्र का अभाव श्रेष्ठी दम्पत्ति के मन में कांटे-सा चुभता रहता। स्त्री होने के कारण सेठानी का दुःख और भी गहरा था। एक दिन शिवा ने यशोभद्र से कहा
स्वामी ! पुत्र के बिना हमारा धनवैभव सब व्यर्थ है। हमारी गाढ़ी कमाई को कौन भोगेगा और कौन हमारे वंश का नाम चलायेगा?
प्रिये ! मैं तुम्हारा दुःख मानता हूँ, ना धैर्य रखो। नवकार मन्त्र का श्रद्धा
और निष्ठापूर्वक जाप करो जिससे
हमारे अशुभ कर्मों का नाश होगा। 5000
मनोकामना पूर्ण होगी।
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सेठानी शिवा को भी नवकार मन्त्र पर अगाध श्रद्धा थी। वह विधिपूर्वक नवकार मन्त्र का प्रतिदिन पाठ करने लगी।
णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं
सव साण
श्वज्जयार णतामालए
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