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________________ कायने वर्णानुक्रमसूची 145 (प्राप्ति) (स्वमे) घृतस्य लाभः ११०,४. (स्वमे) आमिषस्य प्राप्तिः १०९,१६. , चन्दनस्य,,११०,८. दर्पणस्य ,,१०९,१६. " छत्रस्य , ११०,३. माल्यस्य ,१.९,१६. ,, दधिनो ,, ११०,४. (बन्ध) , नागपत्रस्य,, ११०,७. निगउस्य बन्धः १०९,३५. , पाण्डुरपुष्पस्य ,, ११०,८. पाशस्य ,१०९,३५. ,, पादुकयोर् ,, ११०,३. (भक्षण) (विबोधन) है चरणमांसस्य भक्षणम् ,, आसने (ज्वलमाने) विबोधनम् १०९,३५. ११०,५. ,११०,१. , तडागे घृतपायसस्य,, १०९,३४. , याने , १०९,३५. दधिभक्तस्य ,, वाहने बाहुमांसस्य , १०९,३५. मांसस्य , १०९,५३. , ११०,१. वसाया ,१०९,१३. (विविध) , शीर्षमांसस्य ,११०,६. अन्त्रैर्वेष्टनम् ११०,५. (रोहण) आकाशगमनम् १०९,१२. , इभे रोहणम् १०९,१६. आगमनम् ११०,८. क्षीरिवृक्षे ,, १०९,१६. कृमि विष्ठानुलेपः १०९,१४. , गृहे ,, १०३,१९. वृश्चिकोरगग्रासः १०९,३३. , नागे ,, १०३,१९. द्विषदवमर्दनम् १०३,२८. , पर्वते ,,१०९.१६. , पतितोत्थानम् १०३,२८. पुरुषे ,, १०३,२०. " रथयानम् १०३,२७. प्रासादे ,, १०३,१९,१०९, , रिपुनिग्रहः १०१,११. १३,३३. रुधिराभिषेचनम् १०९,१४. , फलिवृक्षे,, १०९,१६. , रोदनम् १०१,११,१०३,२८. , वृषभयुक्तरथे,, ११०,४. " शुक्लाम्बरगन्धधारिण्या नार्या " वृषभे , १०३,१९; आलिङ्गनम् ११०,३. १०९,१६. , श्वेतसर्पदंशः १०९,३२. , शैले ,, १०३,१९; ,, श्वेतवस्त्रानुलेपनम् १०९,१५. १०९,३३. -समय , हये ,, १०३,२०. अरुणोदये ९९,७,११०,११. , हये ,, १०९,५३. चतुर्थे यामे ९९,६,११०,११. (लाभ) तृतीये ,, ९९,५,११०,११. ,, उपानहोर्लाभः ११०,३. द्वितीये ,, ९९,५,११०,१०. , कर्पूरस्य , ११०,८. प्रथमे ,,९९,४,११०,१०. " खड्गस्य , ११०,३. सूर्योदये ११०,११. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002800
Book TitleRisht Samucchaya
Original Sutra AuthorDurgadevacharya
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1945
Total Pages290
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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