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________________ श्री क र म चंद मंत्रि-वंशप्रबन्ध । बंदि छुडावी देसनी, अशनि वसनि सनमानि रे। निज निज घरी पहुती करी, एहि ज गिणि धन गानि रे॥वीका०॥१६६ दातारे कर खंचीयउ, जलधरिखाची धार रे। तिणि अवसरि कण कंचणइ, वूठउ राय सधार रे॥ वीका०॥ १६७ श्रीसेषइ धरती धरी, जांतां जिम पातालि रे।तिम सांगउ त्रिडूलती राखी, प्रजा इणि काल रे॥ वीका०॥ १६८ जइ मुहतउ सोवन तणउ, करत तिवारइं लोभ रे । पडतां प्रज-प्रासादनइ, कुण आपत तिहां थोभ रे ॥वीका०॥१६९ सत्कार देइ करी, तेरह मासां सीम रे । डूली धरणी जिनि धरी, अरिभयभंजणि भीम रे ॥ वीका०॥ १७० पइत्रीसइ दरभिख पडड, रोगिल निबला लोक रे। साजा करावइ मंत्रवी, देइ सगला थोक रे॥वीका॥ १७१ निबला जे साहमी तिहां, आव्या मंत्रिनइ पासि रे । देइ वरषवरउ तिया, पूरी मननी आस रे । वीका०॥ १७२ तेरह मासनइ छेहडइ, देइ संबल हाथि रे । पहुचाया निज मंडलइ, मेली तेहनइं साथ रे ॥ वीका०॥ १७३ तुरसमखानइ लूटतां, सार सीरोही देस रे । सहस जिणिंद प्रतिमा ग्रही, जाणी सोवनलेस रे ॥ वीका०॥ १७४ साहि दरबारइ आणियां, मंत्रीसर वर भावि रे । सोनइया देइ करी, छोडावइ तिहां आवि रे ॥ वीका०॥ १७५ साह सारंग संतति विना, सोवन भूषण काइ रे । न लहइ पाए पहिरवा, इसउ छइ साहि पसाइ रे॥ वीका०॥ १७६ ते मंत्रीसरि रंजवी, साहिथी दूअउ पाइ रे । बछराज संतति वर्णिनी, पिहरइ सोवन पाइ रे ॥ वीका०॥ १७७ तुरसमखांनइ आणिया, वाणिया बंदइ जेह रे । गुजरमंडलथी सवे, छोडावइ मंत्रि तेह रे ॥ वीका०॥ १७८ जैन-याचक भणी जिणि दिया, परवाहइ गजवाजि रे । शत्रुजय मथुरापुरइ, देइ द्रव्यनउ साज रे ॥वीका०॥ १७९ जीर्णोद्धार कराविया, लाहण सगलइ देइ रे । उत्तरि जां काबिलपुरी, इम जगमइ सोह लेइ रे ॥ वीका०॥ १८० अंग इग्यारह सांभल्या, गीतारथ गुरु पासि रे। आगम लिखिवा आपियउ, हरखइ जिणि धनरासि रे।। वीका०॥१८१ गिरिनारइ पुंडरगिरइ, चैत्य कराविवा सार रे । धन खरचइ तृणनी परइ, कीरति समद्रहां पार रे ॥ वीका०॥ १८२ चउपर्वी पालइ जिहां, कारु तरूनउ छेद रे । न करी सकइ कोइ किहां, जाणइ धरमनउ भेद रे ॥ वीका०॥ १८३ सतलंज डेक रावीतणा, ऊवारइ सवि मीन रे । रायसिंह राजइ मंत्रवी, पालइ सवि हीन दीन रे॥ वीका०॥ १८४ रायसिंह फउज लेइ करी, हडफइ बलोचानी माल रे। भांजि किम कहि हरिणली, सहइ सीहारी फाल रे॥ वीका०॥ १८५ उक्तं च-जा मन निवडइ कुंभयडि, सींह चवेड चडक्क । ताम समत्तहं मयलहं, पइ पइ वज्जइ ढक्क ॥ ४ बंदिइ जे तिहां आविया, छोडावइ मंत्रिराज रे। स्नात्र करावइ जिणतणा, देहरे नितु सुखकाजि रे॥ वीका०॥ १८६ श्रीजिनकुशलसुरिंदना, थूभ करावइ अनेक रे। तिणिथी उदउ दिनि दिनि घणउ, वंसनी राखतउ टेक रे ॥वीका०॥१८७ श्रीफलवधिपुरि दीपतउ, थूभ करावइ उदार रे । श्रीजिनदत्तमुरिंदनउ, जागइ जगि जमुकार रे । वीका०॥ १८८ ॥ ढाल ८, ईसाणिंद खोलइ धरइ-ए देशी ॥ कर्मचंद्रनुं अकबर पासे गमन । मंत्रीमुत सोहइ सदा, भाग्यचंद्र भड-भाग रे । लखमीचंद्र गुणे भलउ, राज्यधुरानइ लाग रे ॥ १८९ धर्मप्रसादइ दिनि दिनिइ, श्रीवछराजनउ वंस रे। उत्तर अयनइ रवि जिसउ, दीप्यउ कुल अवतंस रे-आंकणी॥ १९० रायसिंह राजानइ दीयउ, श्रीसाहिइ सनमानि रे । राज-बिरूद रंगइ कीयउं, पंच हजारी गानि रे ॥धर्म०॥ १९१ भूपति दलपतिराजना, मुत जसवंतदे जात रे । कृष्णसिंह सूरिज समउ, सरिजसिंह विख्यात रे ॥धर्म०॥ १९२ देववसई निजसामिनउ, कलुषचित्त मनि जाणि रे। हुंणहार कहु किम मिटइ, बलि कलियुग अहिनाण रे॥धर्म०॥ १९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002797
Book TitleMantri Karmachand Vanshavali Prabandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1980
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & History
File Size9 MB
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