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________________ ११३७ शुक्लैश्च वालव्यजनैः IV. 38.13a शुक्लैः प्रासादशिखरैः IV. 33.15a ,, सुविमलैदन्तैः III. 52.20a शुचयश्चानुरक्ताश्च I.7.2c शुचयः पापसंश्रयात् III. 38.26b ,, पुण्यमाश्रमम् I. 23.17b शुचिना च सुगन्धिना II. 16.9b ,, धर्मचारिणा VI. II9.20b शुचिबाहुमहावाहुः I. 28.7c शुचिभिश्च पुरोहितैः VI. I25.33d शुचिनियतभोजन: II. 109.26b शुचिर्बहुमतो राज्ञः II. 36.18c शुचिर्भव तपोधने I. 46.5b शुचिर्मुनिवरस्तदा I. 27.22b शुचिर्यदि भविष्यसि I. 46.65 शुचिर्वश्यः समाधिमान् I. I.I2d शुचिस्मितं पद्मपलाशलोचनम् V. 13.66b शुचिं वा यदि वाशुचिम् II. 109.4d शुचिः पुण्यफलो भव I. 44.14d ,, सत्यप्रतिज्ञश्च IV. 54.2 IC शुचीनामेकबुद्धीनाम् I. 7.14a शुचीनां रक्षितारश्च I.7.I2c शुचीन्यभ्यवहाराणि IV. 50.35c , 51.5a " , I9c शुद्ध इन्द्रो यथाभवत् I. 24.21d शुद्धजाम्बूनदप्रभः VI. 28.22b शुद्धभावेन जानीषे II. 7.240 शुद्धफेनसमप्रभः VII. 18.29d शुद्धभावेन जानीषे II. 7.24c शुद्धसत्त्वा मुमोचाशु II. 39.32c शुद्धस्फटिकविग्रहे VI. II.IId शुद्धं वेत्ति विभीषणम् VI. 18.37b शुद्धा आपो नभश्चैव VI. 90.87a शुद्धान्तःपुरमत्यगात् II. 17.21d शुद्धात्मन्प्रेमभावाद्धि II. 29.16a शुद्धात्मानौ यदि त्वेतौ IV. 2.27a शुद्धायां जगतो मध्ये VII. 97.5c " , , , , I0a शुद्धाश्च परमर्षयः VI. 4.48d शुद्धेन मनसा मया V. II.45b शुनश्चोपायनं ददौ II. 70.20d शुनःशेपमुवाचार्तम् I. 62.Ic शुनःशेपं नरश्रेष्ठ I. 62.a , नरेश्वरः I. 61.23b , महातेजाः I. 61.240 शुनःशेपः स्वयं राम I. 61.20c शुनःशेपाय वासवः I. 62.26d शुनःशेपो गृहीत्वा ते I. 62.21a ,, महायशाः I. 62.2b शुना मार्जारको यथा VII. 7.21b शुना शार्दूलयोरिव V. 21.31d शुभकृच्छुभमाप्नोति VI. III.26b शुभक्षेत्रगतश्चाहम् I. 18.56a शुभभाविभविष्यति III. 75.6b शुभलक्षणसंपन्नम् I. 16.13a शुभस्फ्यवेगाभिहता II. 52.81c शुभं खगहतं शिरः VI. 54.35d , तु तस्य तद्वाक्यम् VII. 88.18a ,, पुनर्हेमसमानवर्णम् V. 29.5a शुभं वा यदि वा पापम् IV. 30.72a ,, वा यदि वाऽशुभम् II. 18.25b "" , , , 63.6b ,, समास्थाय ययौ यशस्वी VI. II.27c शुभानि कर्माणि बहूनि चकुः II. I09.35b , तव पश्यामि VI. 4.46a , धर्मयुक्तानि V. 30.42c शुभान्याभरणानि च II. 9.50b ,,,,56d ., III. 54.2d १२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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