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________________ १९०७ व्यालम्बबहाभरणैर्मयूरैः IV. 28.370 व्याला गोमायवो गृध्रा: VI. 35.27a व्याला तीक्ष्णविषा यथा II. 12.Iob व्याला न प्रसरन्ति च II. 59.6b व्यालाश्च रुधिराशनाः II. II9.Igd व्यालीव परिसर्पती V. 25.9d , विनिपातिता III. 29.28d व्यालैर्मुगैराचरितम् II. 58.8a व्यालैमंगैरातरवैश्व पक्षिभिः V. 4I.I9b व्यालेश्चतुर्भिः सतु तीक्ष्णदंष्ट्रः V. 48.18b व्यालैश्च बहुमिभीमैः VI. 4.84c व्यावर्तत महाकपिः V. 48.30b व्यावर्तयितुमजसा II. III.21d व्याविद्धदीप्तानलसप्रभाणि VI. 73.55b व्याविद्धमिदमस्माभिः III. 9.27c व्याविद्धरशनादामाः III. 9.46c व्याविद्धहारकेयूराः V. 18.16a च्याविद्धय महतीं गदाम् VII. 15.32f , तं मुद्गरमुप्रवेगम् VI. 67.153c ,, शूलं च तडित्प्रकाशम् VI. 67.6.c ,, शैलं सहसा मुमोच VI. 67.59b व्यावृत्तकचपीनस्रक V. 9.44a व्यावृत्ततिलकाः काश्चित् V.9.45a व्यावेष्टितपरश्वधम् VI. 75.56d व्यासक्तवैदूर्यसुवर्णजालम् V.7.1b व्याहतेऽप्यभिषेके मे II. 22.25c व्याहन्तास्य शुभाचारे II. 14.I7c व्याहन्तुमहमुत्सहे II. I0.34d व्याहरन्त मृगा घोराः VI. 53.15a व्याहरन्ति नभोगता: VI. 79.36d , महावने III. 45.19d ,, समन्ततः I. 74.9b ,, , VI. I0.Igb व्याहरन्त्यशिवं शिवाः VI. I0.20d व्याहरन्प्रतिबुद्धते V. 36.44d । व्याहर्तुमुपचक्रमे I. 62.15d II. 72.46d VI. 115.Id , VII. 5I.Id " , , Iod " 55.3d " , 16d ,, 65.27d व्याहर्तुमुपचक्राम VII. 58.22c व्याहतुं न शशाक सः II. 39.8d, " , , ह VI. II3.14d , , , , VII. 48.20b " . , , , 67.14d " " " ", 105.17b , नाशकत्ततः II. 99.39d व्याहृतं दुर्वचो घोरम् VII. 63.5a , द्विजसंनिधौ III. I0.9d , पुरुषव्याघ्र VII. 83.18c ,, भर्तुभक्तया III. I0.1b राघवं प्रति II. 12.16d , सत्यवादिना II. II8.41b व्याहृतानि मुहुर्मुहुः VII. 41.18b व्याहृतः पुण्यशब्दाश्च II. 65.6c व्युष्टामेव तु तां रात्रिम् II. 69.2a व्युष्य रात्रिं तु तत्रैव II. 89.sa व्यूढानि कपिसैन्यानि VI. 4.54a व्यूढानीकाश्च यत्ताश्च VI. 47.3c व्यूढेनैव सुघोरेण VI. 57.31a | व्यूढोरस्कं महाबाहुम् IV. I7.IIC व्यूहन्निव जनौघं तम् II. 5.2xc व्यूह्य तिष्ठस्व पावके VI. 61.34b , तिष्ठाम लक्ष्मण VI. 4I.IId ,, तिष्ठेम लक्ष्मण VI. 23.2d व्यूह्येदं वानरानीकम् VI. 37.24c व्योमनाथस्तमोमेदी VI. 105.13a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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