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________________ वृद्धांश्च तात वैद्यश्चि II. 100.13 वृद्धांस्तानभिवाद्य च IV. 55.16d वृद्धिकामो हि लोकस्य II. 1. 38a वृद्धिमा शंसमाना ये VI. 109.150 वृद्धिं जन्म च गङ्गायाः I. 35.120 मृत्योरिवागतम् II. 8.4d वृद्धेनापि जटायुषा V. 26.17d वृद्धे पितरि स्वते I. 71.1ga वृद्धैरभिविनीतश्च II. 1. 21 वृद्धर्वानरपुङ्गवै: IV. 67.5b वृद्धैः परिवृतास्तदा II. 76.1gd परिवृतोऽमात्यैः II. 50.34c सह समर्थितम् II. 59.18d " वृद्धो जानपदो द्विज: VII. 73.2b दशरथो नृपः II. 13. 16d वृद्धोपसेवी लक्ष्मीवान् V. 38.59a वृद्धो भ्रातुश्च ते सखा II. 84.12d वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी III. 50.21a वृद्धौ च मातापितरौ II. 6332c वृन्तात्तालफलं यथा VI. 71.61d वृन्तादिव फलं त्वां तु III. 50.28c वृन्दवृन्दैरयोध्यायाम् II. 5.16a वृन्दं वृन्दं च तिष्ठताम् II. 57.12b वृन्दान्युत्सार्यमाणानि VI. 114.22 वृषदंशकमात्रोऽथ V. 2.47c वृषध्वज स्त्रिपुरहा VI. 94.34c वृषभश्रेष्ठविक्रम IV. 3. 1ob वृषभाक्षो नरर्षभः II. 61.22b वृषभानिव नर्दतः III. 73.1gd वृषभेण बलीयसा VI. 128.3b वृषभो गोवधूमिव II. 43.12d वृषा गवां मध्यगता नदन्ति IV. 30.38d वृषेन्द्रमास्थाय शशिप्रकाशम् VI. 59.19c वृष्टिमन्तं पयोदान्ते V. 46.25c महामेघम् II. 2.17C در د. " Jain Education International १०९५ वृष्टतावधूतान् II. 63.17c वृष्टवताः समुद्यता: IV. 30.25d वृष्टिं प्राप्य वसुंधरा V. 40.2d वृष्टेर्यथा निम्नमिवाम्बुवेग: IV. 24.16d वृट्वेवोपतं धनम् IV. 19.23b वृष्ट्वेवोपरते देवे VI. 46.2a वेग आसीत्सुदारुण: VII. 32.35b वेगदर्शिनमेव च VI. 73.58d ,,,, 74.1od वेगदशी च वानरः VI. 4.20b 24.17d 30.23b 128.52b " "" 99 ,, वानराः VI. 76.6ob वेगप्रभावमन्वेष्टुम् VII. 32.11 वेगवद्भिर्नदद्भिश्च VI. 33.24a वेगवद्भिस्त्रिभिः शरैः III. 27.18b देगवन्तं विजग्राह V. 62.25c वेगवन्तः लवङ्गमाः V. 64.25d तो ये V. I. IIIa वेगवन्मारुतात्मज IV. 67.31d वेगवानविचारयन् V. 1.42b VI. 76.8d 125.25d 33 वेगवानिव केसरी VI. 76.64d वेगवान्रावणात्मजः VI. 88. 1gb वेगवान्वायुविक्रमः VI. 77.15d वेगवान्वै महाकपिः V. 53.35d वेगविक्रम संपन्नान् IV. 41.5c वेगस्ते वायुना तुल्यः VII. 37.6c वेगं चक्रे महावेगः VI. 98.6a परिहरेच्छरैः III. 31.23d प्रचक्रतुर्वैारौ III. 4.4c " "" " " " " 29 "" " "" " "3 27 For Private & Personal Use Only "" वापि समुद्रस्य III. 31.25c " , सहस्व दुर्बुद्धे VI. 86.31c www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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