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________________ विधिना पावकोपमाः III. 1. 16b प्राप्यते महान् III. 9.2b मन्त्रदृष्टेन VI. 112. ra सुसमाहितः I. 9. 13f विधिमन्त्रपुरस्कृतम् I. 73.24b VII. 62.21f विधियुक्तं विभीषण: VI. 111.120b विधिरेष भवत्यहो IV. 23.4b विधिर्धर्ममनुस्मर II. 56.23d विधिर्नूनम संहार्यः V. 37.4a विधिर्हि भविता ध्रुवम् I. 10.27d विधिवत्तेन रक्षसा III. 35.3gb विधिवल्लवगर्षभाः IV. 25.51b विधिवत्संविधास्यति V. 39.12d विधिवन्मन्त्रपूर्वकम् I. 73.23d विधिवन्मन्त्रसत्तमैः VI. 73. 18d विधिस्तव वधार्थाय V. 22.21C विधिहीनस्य यज्ञस्य I. 8. 18a "3 " 12.18c विधिः किल नरं लोके IV. 50.4a प्रत्युपवेशने II. 111.17d 33 लिप्यते तेन VI. 83.23c विधीयते सहास्माभिः VI. 12.29c विधुन्वन्साय काशितान् III. 27.9d विधूतकल्मषैः सिद्धैः II. 95.13a विधूतकेशी युवतिः V. 14.18a विधूत करावुभौ I 28.8b विधूतवर्मा नाराचैः VI. 88.55a विधूत सर्वाभरणः परंतपः II. 74.36b विधूम इव कालाभिः I. 55.28c "" " " رو .. " ور " " " ور رو " 37 56.1gc "" "" पावक: IV. 67.7d VI. 56.28d 77.7d 88.20d " " "3 در Jain Education International "" "" १०६१ विधूम इव पावक: VII. 20.27 d विधूमज्वलनप्रभैः VII. 42.3d विधूमरश्मिर्भवनेषु सक्तः V. 54.32c विधूमवैश्वानरभीमदर्शनः VI. 67.166a विधूमस्य महार्चिषः VI. 73.22b Co.gb विधूममिव हेमाभाम् II. 114.5a विधूमोऽग्निरिव ज्वलन् III. 28.1gd विधूमोऽग्निरिवोत्थितः III. 72.4b विधूय जलदान्नान् VI. 5.17C 39 39 " रूपं व्यथयन्मृगद्विपान् V. 1.20rd शोकं परिहृष्टमानसा II. 60.22a 33 "2 विधूयाथ चितां तां तु VI. 118.2a विधेयश्च सखा च मे II. 30. Iod सदानघ II. 30.gd विधेयानां च दासीनाम् VI. 113.37a विधेयाश्वसमायुक्तः VI. 2. 100 विध्यन्ति विमुखांश्चापि IV. 18.39c विध्वस्तकवचां रुग्ण- II. 114.6a विश्वस्तकवचैा वीरौ VI. 47 1ga विध्वस्तौ पश्य लक्ष्मण III. 64.4gd विध्वस्य त्रिदशान्शेषात् I. 66. gc विध्वंसयति राक्षसः VII. 13. rod विध्वंसयन्तं तरसा VI. 86.20a विध्वंसय शरैर्दितैः VI. 87.6c विध्वंसयितुमिच्छामि VI. 106. IIC विध्वंसितरथच्छत्रः III. 67.17c विनतं कचिदुद्धृतम् I. 43.24a धूम्रमेव च VII. 39.21d नाम यूथपम् IV. 40.16b विनता कल्पयत्पुरा II. 25.33b >> دو "" च शुकीपौत्री III. 14.3IC विनते गोमतीं नदीम् II. 71.16b विनतो नाम यूथपः VI. 26.41b हरियूथपः IV. 45.5d ވ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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