________________
रजनी चाभ्यवर्धत II. 48.33d
" , , 85.14d रजनीयं मया सह II. 4.36b रजन्यामप्रकाशस्तु VI. 23.8d रजन्यामप्रशस्तश्च VI. 41.17a रजन्यां तु प्रभातायाम् VII. 99.ra
, सुप्रभातायाम् II. I05.2a ,, हृस्वतां गतः V. 2.44b रजश्च सहसैवोर्ध्वम् VI. 39.15c रजश्चारुणवर्णाभम् VI. 55.18c रजसा ध्वस्तकेशो वा II. 91.66c रजसाभ्यवकीर्णानि II. 33.19a रजसा महता चापि VI. 23.10a
,, समभिप्लुताम् VII. 81.2b रजः प्रशान्तं स हिमोऽद्य वायुः IV. 28.15a ,, समभिवर्तत IV. 39.8b रजगतिभिराशुगैः VI. 45.23b रजोध्वस्तशिरोरुहाम् V. 58.57d रजोध्वस्ता तथैव च V. 59.25b
,, विवर्णाश्च VI. 35.26c रजोमलाभ्यामालिप्तः VI. 8I.I0c रजोमेघेन महता I. 26.15c रजो रमण तन्मन्ये II. 30.13c रजोरुणद्वारकवाटयन्त्राम् II. 71.45b र जोरूपमदृश्यत II. 42.1b रजोवर्ष समुद्भुतम् VI. 127.28c रज्जुबन्धनबद्धाभिः VI. 60.54a रज्जुभिरिव वानरी II. 78.7d रज्जुभिश्चापि बध्नन्ति V. 58.131c . रज्जुमुक्तौ प्रकम्पितौ VI. 45.17d रज्जुरुद्वन्धनी यथा II. 12.8od रज्जुस्नेहेन किं तस्य II. 37.3c रज्जु बद्ध्वाथवा कण्ठे II. 74.33c रज्ज्वेव पुरुषं बद्ध्वा V. 37.3c रञ्जकास्तिलकाश्चैव VI. 4.79c
रञ्जनीयस्य विक्रमैः VI. I04.6b रञ्जयस्व नरोत्तम VII. 645d रञ्जित शुशुभे मुखम् V. 44.9b रणकर्म निवर्तताम् VII. 29.33b रणकर्मविशारदौ V. 48.32b
, VI. 88.59b रणकर्मस्वकुशलः IV. II.I7c रणभूमिं विराजयत् VI. 7I.I6b रणमूर्धनि लक्ष्मणः VI. I0I.IId रणरतराममुवाच वाक्यमाशु VI. I07.67d रणशीर्ष तदद्भुतम् VI. 59.5d
, परानरीन् VI. 76.IId ,, विचरतुः VI. 74.7d रणश्लाघी च राघवः V. 58.74b रणाग्रे समर श्लाघी VI. 90.34a रणात्पराङ्मुखं देवम् VII. 7.39c रणात्स्वपुरुषैः शीघ्रम् VII. 23.48c रणाय निर्गच्छति बाणपाणौ V. 48.22d
, निययौ क्रुद्धः VII. 18.140
, वीरः प्रतिपन्नबुद्धिः V. 48.15d रणायात्युद्धतौ वीरौ VI. 81.4c रणायेन्द्रजितं सुतम् VI. 80.2d रणे कर्म सुदुष्करम् VI. 76.37d , तो रेजतुर्वीरौ VI. 90.37c ,, त्रिशिरसा सह III. 28.1b , दारुणविक्रान्त IV. 20.4a रणेऽद्भुतपराक्रमः VI. 59.48b रणे निधनशंसीनि VI. 95.46c ,, निपेतुर्हरयोऽद्रिकल्पा: VI. 73.52c ,, निमित्तानि निमित्तकोविदः VI. 106.36b ,, पश्यन्ति राक्षसा: VI. 93.26b ,, पांसून्समुत्किरन् VI. I06.28b , प्रहरणस्यार्थे III. 30.17a ,, प्राप्स्यसि संतिष्ठ III. 3.9c , बहुप्रहरणः VI. III.83c
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org