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________________ कोपप्रशस्ताः सुभृताश्च योधाः V. 52.23d कोषप्रसादापरगात्रहस्त: VI. 109.10b कोपमार्येण यो हन्ति IV. 31. Ec कोपमाहरत्तीव्रम् VI. 100.18C कोपयेत्वां न भीषये VI. 37.23b कोपसंरक्तलोचनः III. 3. 8b IV. 31.29b V. 22.30b VII. 13.33d कोपसंरक्तलोचनाः VI. 6.59b कोपसंवर्तितेक्षण: V. 38.28b V. 42.22d V. 67.11b " " " "" دو " कोपस्तस्य प्रजज्वले VI. 59.66b कोपं राघवसिंहस्य I. 3.25a कोपं संतापमात्मनः I. 64.14d कोपादेकाक्षिशातनीम् V. 40.4d कोपाद्वा यदि वा मोहात् V. 33.8a कोपाद्विजृम्भमाणस्य VI. 92 18e कोपानलसमाविष्टः VI. 79.9c कोपाभिभूतः सहसा II. 35.20 कोपविष्टः स दन्दुभिः IV. 11.24b कोपविष्टेन तेजसा IV. 66.23d कोsपि लोके न मे वेगम् IV. 67.36a कोपे च हरिरीश्वरः IV. 63.31b कोपेन च महातेजाः I. 64.16a महता कपिः VI. 82. gb महताऽऽविष्ट: V. 52. 100 महताविष्टः VII. 55.15a परवीरहा VI. 59.74d कोपनाभिपरिवृतः VII. 58.22b कोपोपहतचेतना V. 25.10b कोपोपायसमन्त्रितैः IV. 54.7d कोऽप्यसौ राक्षसेश्वर VII. 32.18b को ब्रवीति ब्रवीहि मे III. 31.43b " " " Jain Education International २४० को ब्रह्मदण्डप्रतिम प्रकाशान् VI. 15.13a भजिष्यति कौसल्याम् II. 30.1Ic " भवानित्युवाच तम् VII. 18.8b भवान्देवसंकाशः VII. 77.1ga भवान्रूपसंपन्न: VI. 50.44a कोमला विलपन्त्यास्तु III, 60.32c कोमलैर्नृत्यशालिनी V. 10.36b को मां संध्यामुपास्यैव II. 64.33a को मे श्वस्तन्यदास्यति II. 34.40b कोऽयं कस्य कुतो वापि V. 48.55a वायम् V. 42.6a "" " "" " 33 गिरा घोषयति IV. 56.1ga " दुरात्मा दुर्बुद्धि: IV. 11.500 कोऽयमेवं महावीर्यः III. 10.6c कोयष्टिभिश्चार्जुनकैः III. 75.12a कोऽयं यस्तु त्वया ख्यातः VII. 25.20c शंकर इत्युक्त्वा VII. 16. 12c कोsर्थी मनीषितस्तुभ्यम् VII. 75.17a asaमन्येत बुद्धिमान् VII. 17.25d कोऽसौ पर्वतसंकाश: VI. 61.5a VI. 71. 12a 33 19 در 19 रामो मुनिं द्रष्टुम् III. 12.1.4a कोsस्मिन्कल्पयिता पुरे II. 76.8b को राज्यं मद्विधो हरेत् II. 82. 11d रामस्य व्यतिक्रमः III. 39.24f III. 50.15b को रिपुं प्राकृतं यथा VI. 64. 17b कोलाहले राक्षसराजयोधाः VI. 41.99b को वधेन ममार्थी स्यात् II. 63.2ga वा दारैर्वियोजितः VII. 48.4b प्रेतो भविष्यति VI. 62. 12b सुमहदप्रियम् II. 10.32b हरति मैथिलीम् IV. 59.3b कोविदारध्वजो रणे II. 96.21b "" रथे II. 84.3d "" در ار " " " " " 13 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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