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________________ यं पालयसि धर्म त्वम् II. 25.3a ,, पुरा सह सीतया IV. 1.54b ,, पृष्ठतोऽनुगच्छन्ति VI. 27.4a ,, मुहूर्तमपश्यंस्तु II. JI.7a ,, यं देशं समुद्रस्य V. 1.66a ,, यान्तमनुयाति स्म II. 33.6a ,, यान्तमनुयान्ति स्म II. 58.7a , यान्तं पर्यवारयन् I. 5.2d ,, , वानराः घोरा: V. 26.31a ,, रामोऽनुगमिष्यति II. 48.IIb ,, समाश्रित्य जीवन्ती VII. 23.23a , , ते राजन् VII. 30.6c ,, सीता स्वयमास्थिता V. 42.19b ,, सूर्यस्तुल्यवर्णाभम् VI. 27.35a यः कपीनतिबभ्राज VI. 28.29c , करोति दशानन VI. 12.30b ,, , सुरेश्वर VII. 8.4b , कश्चित्सकृदनाति IV. 37.30c ,, काममनुवर्तते II. 53.13b ,, कार्य साधयिष्यति IV. 65.34d ,, कुर्यान्मम विप्रियम् III. I9.7b ,, कृतः समयोऽस्मासु IV. 52.22a ,, कृते हन्यते भर्तुः VI. 92.9e ,, कृत्यवान्सुवर्णेन VII. 92.15c ,, क्षीवं स्त्रीगतं चैव VII. 32.29a ,, खल्वपि वनं प्राप्य VI. I3.2a ,, पठेद्रामचरितम् I. I.98c , परः पर एव सः VI. 87.15d ,, परानुपजीवति II. I05.7d ,, परैरुपजीव्यते II. 105.7b ,, पश्चात्पूर्वकार्याणि VI. 12.32a , , ,, 63.5a ,, पितुर्नः पुरोहितः III. 66.8b ,, पालयति मेदिनम् II. 3.45b ,, पुरा गोमतीतीरे VI. 26.25c यं प्रग्रहानुग्रहयोः II. I.250 , प्रदीप्तां हुताशस्य VII. 81.5c ,, प्रसाद्यः पुनर्भवेत IV. 32.20b ,, प्राप्तः सोपिऽदृष्ट्वैव VII. I09.18c ,, शरेणैकपुत्रं माम् II. 64.52c ,. शापाद्राक्षसोऽभवत् I. 25.0d ,, शृणोति च काकुत्स्थ I. 44.23a ,,, निरीक्षेद्वा VII. I03.12a ,, , सदा लोके VI. 128.106a ,, शैलशिखरोपमः III. 32.17b ,, श्रावयति विप्रेषु I. 44.21c ,, स कुम्भो रघुश्रेष्ठ VII. 57.4a ,, समग्रेण रक्ष्यते VI. 39.23d ,, समर्थः प्रबाधितुम् II. 23.171) |, समुत्पतितं क्रोधम् V. 55.6a ,, समुद्रमखानयत् II. II0.255 ,, स वासवनिर्जेता VI. 86.33a ,, संसदि प्रकृतिभिः II. 99.31a ,, सुखेनोपधानेषु II. 42.15a ,, सुरैः सोऽद्य वर्तते VI. I08.2d ,, स्याच्छत्रुर्मतो मम II. 23.31d ,, स्वपक्षं परित्यज्य VI. 87.16a , स्वप्ने लभते वित्तम् III. 73.33c ,, स्त्रियो वचनाद्राज्यम् III. 49.14C ,, स्थितं योजने शैलम् VI. 27.17a या क्षमा मे गतिर्गन्तुम् VI. II6.19c ,, गतिर्यज्ञशीलानाम् III. 68.29a ,, गतिस्तां निबोधत IV. 65.13b , गतिः सर्वभूतानाम् II. 64.43a ,, ,, , , 72.15a ,, च कल्याणसत्त्वता II. 44.14b याचतस्तस्य सामतः VII. II.20d याचते गमनं प्रति II. 29.22b ,, त्वां दशाननः VII. 26.27b र स्म कृताञ्जलि: IV. II.62d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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