SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ केशकम्बलधारिणीम् V 17.6d aus: VI 81.18b केशानन्ये प्रलुपः VI. 60.51c केशानां लुमनैस्तथा VI. 113.33d केशान्कललाटं च VI. 93.13a केशान्केशान्तदेशं च VI. 32.2c केशान्दस्तेन साच्छिनत् VII. 17.27b केशवोत्पाटयामास III. 51.350 केशांशिन्नांस्तदाकरोत् VII. 17.27d केशाः सूक्ष्माः समा नीला: VI. 48.9a केशिनी नाम नामतः I. 38.3b "; "" सगरात्मजम् I. 38.16d "" केशिन्यां तावथोषतुः VII. 51.2gd रघुनन्दन: VII. 52.1b के शूराः के महाबला : VI. 26.8d केशांचिदिषुभिर्ब्रहून् VI. 98.3c केषां शृणोति सुग्रीवः VI. 26.9c केसरिं शरभं शुम्भम् VII. 40.7C हरिलोमानम् VI. 73.59c " केसरी च चतुर्दंष्ट्र: II. 14.38c नाम यूथपः VI. 27.38b "" ار रघुनन्दन I. 38.13b सागरं यथा V. 24.12 , ور ار पनसो गज: VI. 4.33b प्रत्यदृश्यत IV. 39.18d " के हि लोकप्रियं कर्तुम् III. 64.53c कैक्सी च शुचिस्मिता: VII. 5.4cd नाम नामाहम् VII. 9.20c कैकसीं नाम नामतः VII. 9.7d कैकस्याः पश्चिमः सुतः VII. 9.35d कैकेयास्तु सुसंवृत्तम् II. 2.1ga कैकेयांस्ते गमिष्यन्तः II. 68. 100 कैकेय कुलपांसन II. 64.76d ,, कुलपांसिनि II. 37.22b faar VII. 35.19d Jain Education International २३६ केसि नरकं गच्छ II. 74.40 परिहास्यते II. 8.22d मामकाङ्गानि II. 42.6a मयतां वचः II 9.5b कैकेयी के गुणं तत्र II. 75.120 " "" कैकेयी किमुवाच ह II. 7o. rod कुलपांसनी II. 48. 22d केवीं किं नु मातरम् VII. 43.6b कैकेयीग्राहसंकुलः II. 77.13b कैकेयी च न संशय: V. 13.25d aaafta VII. 99.15b 12 "; در सुमध्यमा I. 77.1od " सुमित्रा च II. 83.02 चाभवत्तदा II. 109.25d कैकेयी तत्र जग्राह II. 92.17a कैकेयीत्वब्रवीत् कुब्जाम् II. 7.17d दारुणं वचः II. 11. Id 32 " " " द्विगुणं क्रुद्धा II. 36. 150 कैकेयीनन्दिवर्धन: VI. 128.1b कैसी नाम भर्त्तारम् III. 47.6c V. 33.19c " कैकेयी च पुनः पुनः II. 52.3od " " "" "" "" 33 "3 "" 23 कैकेयीं च वधिष्यामि II. 96.26c सुमित्रां च VI. 119.4c चाभ्यवादयत् VII. 64. 15d चेदमभी II. 1g.rd कैकेयी पार्थिवं पुनः II. 14.20b कैकेयीं दुष्टचारिणीम् II. 78.22b कैकेयी पर्यपृच्छत II. 10.1gd कैकेयी प्रत्ययं गच्छेत् II. 52.61c प्रत्युवाच ह II. 14.59d कैकेयीप्रमुखाः स्त्रियः II. 65.25b " प्रदक्षिणम् II. 19.2gb यशस्विनीम् VI. 12 1.20b VI. 127.50b " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy