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________________ कृपणं बहु भाषितुम् II. 103.6d रुदितेन वा II. 44.2d विललाप है II. 78.25d कृपणमतीव विलप्य कुम्भकर्णम् VI. 68.24b नृपणमुदाहृतवान्स गृध्रराज: IV. 56.17d कृपण: पांसुगुण्ठितः II. 42.17b कृपणाकृपणा सती IV. 20.16b कृपणा दीनवत्सला VI. 113.35d कृपणा पर्यदेवयत् VI. 111.2d ار 21 वर्तयिष्यामि II. 20.47C. कृपणां गन्तुमिच्छसि VI. III.6od कृपण पुत्रगर्धिनीम् II. 64.35d कृपणाः करुणा वाचः II. 47.3c कृपणा रुरुदुः सर्वाः II. 81.8c कृपणेन गतायुषा V. 24.26d तपस्विना VI. 8.1ob " कृपणेभ्यो यदापयत् II. 32.28d कृपण साधु पश्यतु VI. 31.41d कृपया कुशिकःत्मजः I. 59.1b परिपालय V. 67.16b पर्यपालयत् V. 38.33d " कृप चकार तेजस्वी V. 3.42c न कुरुते राजा IV. 30.66c मयि नरर्षभ V. 38.38b कृपाणैर्विशशासनम् I. 14.33c कृपालुः शंकररतुष्टः VII. 16.33c कृमिमिर्भक्ष्यमाणांश्च VII. 21.13a कृमिरागपरिस्तो मे IV. 23.14a कृशप्रवाहानि नदीजलानि IV. 30.36b कृशमाश्रमवासिनम् VI. 125.30b कृशां गिरिनदीमिव II. 114.4d कृशाशी धर्मचारिणी V. 65.26b कृशामनशनेन च V. 15.23b कृशाश्वतनयान्राम I. 28.1oa क्रशा स्थण्डिलशायिनी VI. 42.8d 39 " Jain Education International २३३ कृषतः क्षेत्रमण्डलम् II. 118.28b कृषिगोरक्ष जीविन: II. 67.18d कृषिगोरक्ष्यजीविनः II. 100.47b कृष्णपक्ष चतुर्दशी VI. 92.62b कृष्णपक्षे निशामिव V. 19.red कृष्णमेघगिरिप्रभः II. 26.16d कृष्णरक्तांशुपर्यन्तः VI. 23.8c VI. 41.17C "" कृष्णवक्त्राक्षिपक्ष्मणा V. 15.36b कृष्णवाजिसमायुक्तम् VI. 106.50 कृष्णवेण महानदीम् IV. 41.9b कृष्णश्चैव बृहद्बल: VI. 117.35d कृष्णसर्पनिषेवितम् II. 58.8b कृष्णसर्पमिवास्पृशम् II. 12.81d कृष्णसर्पाविवोद्यतौ III. 3. 20b कृष्णसारं मुमोच ह VII. 92.rd कृष्णा चैवायता चैव IV. 27.13C कृष्णाजिनजटाधरः II. 101.3b कृष्णाजिनजटाधराम् VII. 17.2b कृष्णाजिनधरं तं तु II. 99.26a कृष्णाञ्जनचयोपम: VI. 86.16b कृष्णान्कनकभूषणान् VI. 89.39b कृष्णा शिखरोपमम् III. 11.51b कृष्णं रक्ताम्बरधरम् I. 16.12a कृष्यमाणमितस्तत: V. 48.58d कृष्यमाणस्तु रक्षोमि: V. 48.51c कृष्यमाणौ महाबलौ III. 69. 36d कृष्यमाणं भविष्येण IV. 22.3c कृष्यमाणः स्त्रिया मुण्ड: V. 27.21: कृष्यसे मनुजेश्वर IV. 17.34d केकयः पृथिवीपतिः II. 35.24b केकयं मातुलं प्रभुम् VII. 38.8b केकयस्थे च मयि तु II. 102.5a केकयाधिपती राजा I. 73.3a केकयाधिपतेः सुता II. 16.17d For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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