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________________ महादेवोऽक्षरोऽव्ययः VII. 4.2gd महादेवो पृषध्वजः VI. 117.3b महाद्रिकूटप्रतिमैः प्रवङ्गमैः IV. 55.23b महाद्रुममहारमभिः VI. 55.2gd महाद्रुमलतावृत: V. 1.94d महाद्रुमं छिन्नमिवाश्रिता लता IV. 22.31d महाद्रुमः कालहतोऽशनेरिव V. 21.34d महाद्रुमामाण्यभिसंपतन्ति V. 61.18b महाद्विपाश्च सिंहाथ II. 25.1ga महाधनं धर्मबलैरुपार्जितम् II. 32.44b महाधनुषि जिज्ञासाम् I. 50.240 माधुर्यसमुद्यतम् II. 73. 16b महाक्रसमाकुलम् VI. 2.5b महानग्निरिवोत्थितः III. 24.17d महानदीनां पुलिनोपयातै: IV. 30.31C महानदी प्रकीर्णेव V. 10.37C महानद्योः समागमे II. 54.22b महानना दीर्घविरूपदर्शना: V. 12.4b महानपि दुरारोह: VI. 128.6c महानभ्युदयो द्विज I. 18.58d महानम्बुधरो यथा VII. 23.46d महानयं वरस्तात VI. 120. 12a महानयुद्धेन सुखस्य लाभ: VI. 64.35d महानागमने गुण: V. 37.59d महानादस्य चक्षसि VI. 58.22 महानादं च मुक्तवान् VII. 29.3d प्रकुर्वाणः VII. 7.270 महाजवम् III. 22.17d 29 महानादः समुन्नतः VI. 57.3od "" 33 58.19b महानादान्प्रमुञ्चन्ति VI. 4. 66a महानत्य तिष्टति VI. 26.36b महानासीत्कुलक्षयः I. 45.40b महानासीत्समुत्सवः I. 49.1gd महानासीद्विपश्चितो: VII. 53.15d हानिद्रावशं गतः VI. 60.52d ८२ "" 27 Jain Education International ८२५ महानिव शिलोच्चयः V. 35.45d महानुभावस्य वचो निशम्य IV. 7.25a महानुभावस्य समीपमार्या IV. 24.2gb महानुभावं चरितं निबोधत I. 4.35d महानुभावः सजनः समाहितः II. 85.22b महानुभावो भरतश्च धार्मिकः II. 104.32b हनुमान्ययौ तदा IV. 2. 29c " महानूपुरकेयूरैः V. II. rga महानृषभसंस्थितिः IV. 41.3gd महानेको दृश्यते VI. 61.6b महानौरिव सागरे V. 1. 177b महान्कालोऽत्यवर्तत VI. 126.41d महान्तमचलोपमम् I. 40.20b महान्तं दारुणं भीमम् III. 69.34a हरितच्छदम् II. 55.6b "" महान्ति कूटानि महीधराणाम् IV. 28.48a गिरिशृङ्गाणि VII. 28.14c च निमित्तानि VI. 4. 45c "" " च लघूनि च II. 92.35b बलवन्ति च V. 37.53b शिखराणि च VI. 42.12b महान्ति सदृशानि च VI. 48.23b महान्त्यपि हि कारय II. 112.17d महान्धर्मपरः सदा I. 34.20b महान्नृगस्य राजर्षेः VII. 54.2c महान्मत्त इव द्विपः IV. 67.43d महान्महेन्द्रस्य यथा II. 34.3c महान् रामेण संयुगे VI. 113.gd महान् समुत्पन्न: VI. 35.120 महान्विवृत्तनयन: V. 44.20 महान्समुदपद्यत II. 81.14b महान्सूर्य इवोदितः III. 64.57b महान्सोमगिरिर्नाम IV. 42.150 महान्हासो भवेदिति VII. 63.24d महापङ्कमिवासाद्य VII. 23.45c "" " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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