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________________ भर्तारमिदमब्रवीत् " "' III. 9.1d VI. 116.4d भर्तारमिव संप्राप्तम् V. 36.4c भर्तारमुपचक्रमे II. 10.40d भर्तारमुपसंगम्य V. 24.4c भर्तारं रणरेणुना IV. 23.2od राक्षसेश्वर VI. 114. 11d रामकारणात् V. 30. 15b लोकभर्तारम् II. 35.300 वरदं पतिम् II. 35 8b "" ,, विषुधोपमम् III. 53. 15d समनुध्यान्तीम् VI. 31. 12c समुदैक्षत VI. 111.ad सर्वरक्षसाम् V. 24.25b 37b "" " "" "" " " "" "" "" "" .. " " " "" भर्तारौ भ्रातरस्तथा II. 41.18b " रावणेन न: VII. 24 17d भर्ता वा ते सुमध्यमे V. 33.b " "" सर्वस्य जगतः II. 35.5c भर्ता सदृशस्तव III. 55.22b भर्ता हि परदैवतम् II. 29.16d भर्तुः कमलपत्राक्ष V. 35.6c करविभूषितम् V. 36 4b कार्य विशेषतः VII. 4. 18b "" " " " "" 37.11d 61.1d "" "" 3. समुद्राया V. 38.40c सागरान्तायाः II. 98. 11c साभ्यवर्तत VI. 114.33d र्नित्यमसंमता II. 20 42b परा धर्मपर। निविष्टा V. 519c पुनः परित्यागः II. 24. 12a प्रियचिकीर्षवः II 16.6b " प्रियहिते युक्ते VI. 113.22 रता II. 24.37d Jain Education International ૭૨ भर्तुः प्रियहिते रता III. 34. rsd " 27.15c प्रियार्थं कुलरक्षणार्थम् II. 6S 22a भर्तुर्भक पुरस्कृत्य V. 37.62a भर्तुर्भर्ता विधाता च VII. 26.27c भर्तुर्भार्येव तद्वशे IV. 32.21d भर्तुर्मनः श्रीमदनुप्रविष्टाम् V.524c भर्तु परिहास्यसे VII. 48.8d भगभ V. 37.32d भर्तुरङ्कगता सती VI. 92 52d भर्तुरात्समुत्पत्य V. भर्तुरप्यतिकुप्यन्ति II. 100.33c भर्तुर परो दान्तः IV. 22.22c भर्तुर्थश्व हास्यति V. 2.43d भर्तुरर्थे परिश्रान्तम् IV. 51.5a भर्तुरस्या जयाय च V. 58.88b भवाय च V. 27.cd भर्तुराज्ञाय शासनम् II. 34.12d भर्तुरिच्छ'मुपास्येह II. 3529c भर्तुरिच्छा हि नारीणाम् II. 35.8c भर्तुहता मया गुणाः V. 35.82b भर्तुर्नृशंसा न चकार वाक्यम् II. 13.24d भर्तुर्हितं वाक्यमिदं बभाषे IV. 33.58d भर्तुर्विजयकाङ्क्षिण: VI. 95.sd भर्तुर्विजयकाङ्क्षिण VI. 113.22b भर्तुर्विजयश्रितम् VI. 113.17b भर्तुर्विजयहर्षिता V. 27.47b " "" " 58.91d भर्तुर्वैगुण्यमुच्यते VI. 32.9b भर्तुः शंसत मां हृताम् III. 49 32d शिरो धनुश्चैव VI. 32.33c 39 शुश्रूषया नारी II. 24.26c भर्तुश्च वंशस्य परिग्रहार्थम् II. 68.22b भर्तुश्चैव तथानुजम् IV. 19.25d भर्तुः संदेशहर्षिता V. 36.6b समीपादपनीयमाना IV. 24.27b "" For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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