SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 597
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भक्ति भक्तेषु दर्शय II.45.29d भक्तिमन्तीह भूतानि II. 45.29a भक्तिमन्तो नरा भुवि VI. 117.3od भक्तिमानिति तत्तावत् II. 52.38c भक्तिर्भतरि चोत्तमा V. 59.2gd भक्तिश्च नियता वीर VII. 40.16c भक्तिश्चास्याः सदा त्वयि V. 65 18d भक्तैरनुचरैः सह VI. 19.2b भक्त्या च द्विजसत्तमाः VII. 90.17d " " 23 " " " "3 स्निग्धेन चक्षुषा VII. 89.4d भक्त्वा प्रासादशिखरम् VI. 41.90a 23 वनं महातेजा V. 54.47a शाखां सुपुष्पिताम् IV. 5.18d भक्षणैः कर्णनासानाम् VI. 113.33c भक्षन्तां या यदिच्छति II. 91.52d भक्षः प्रीणय मे देहम् V. 58.40c भक्षमाणाव संतुष्टौ VII. 65.120 भक्षयन्तं परबलम् VI. 69.82c भक्षयन्तः लवंगमान् VI. 44.6d भक्षयन्तं महाकपीन् VI. 67.54b महाघोरान् III. 69.31a सुगन्धीनि V. 61.14a VI. 4. 27a " :) परया युक्ता VII. 48.12c त्वरितवान्नृपः II. 1. 45d परमया च सः VI. 59.117d रामस्य ये चेमाम् VI. 128.12ca विवदमानेषु II. 75.58a ور 13 " "" भक्षयन्ति तथापरे V. 62.1ob " 33 63.8b भक्षयन्ति परस्परम् II. 67.3rd भक्षयन्ति पिबन्ति च V. 63.6d वनौकस: V. 63.7d "" " स्म राक्षसान् III. 31. 1gb भक्षयन्तीं भृगान्भीमान् III. 69.13a Jain Education International ७६२ भक्षयन्परिधावति VI. 61. 3od भक्षयन्भृशसंक्रुद्धः VI. 67.7e 36a "" भक्षयन्रजनीचरान् VI. 44.27d भक्षयन्वन्यमाहारम् II. 12.97c भक्षयन्विचचार ह III. 42.22d VII. 9.38d " "" भक्ष्यस्व च मा चिरम् I. 10.1gd स्वकं मधु V. 64.7b भक्षयादित्यतेजस VI. 65. 13d भक्षयामास काकुत्स्थः VII. 65.70 राक्षसः VII. 67.18d वानरान् VI. 67.96d संक्रुद्धः VI. 67.34c " رو "" " "" भक्षयामि समन्ततः III. 71.15b भक्षयित्वा गमिष्यथः III. 73.6b च वानरान् VI. 68.2d तदामिषम् III. 35.32d फलान्यथ VII. 93.8b भक्षियत्वामृतरसम् VII. 78. 170 भक्षयित्वा विशालाक्षीम् III. 67. 12a भक्षयिष्यति नः सर्वान् VI. 94.36c नित्यशः VI. 61.20b " >> در " " "" भक्षयिष्यामहे वयम् V. 24.27d भक्षयिष्यामि पावकम् VI. 63.52b भक्षयिष्यामि मानुषीम् III. 17.27d " मैथिलि V. 24.37 d वानरान् VI. 65.22b भक्षयिष्ये प्रवेक्ष्ये वा VII. 58. 19 भक्षयेद्भुवनत्रयम् VII. 10.3gb भक्षयेयं विषं तीक्ष्णम् II. 18.2ga भक्षार्थं गरुडः शाखाम् III. 35.29a जातसंरम्भा I 25.11a "" भक्षार्थी बलिभोजन : V. 38.16d भक्षितं मधु वानरैः V. 63.16d For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy