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________________ ७१७ प्रहर्षमतुलं लेभे III. 74.30c " , IV. 8.25c " , , , 45c " , , 63.10a , V. I7.30c ,, VI. 91.7c , VII. 42.300 " " , 46.10a " , 51.28c " " 59.8c " , , 75.Ic " ,, ,, 83.16c , ,, ,, 92.3c प्रहर्षमीयुर्बहवश्च वानराः VI. 67.175a प्रहर्षमुपनीताश्च VI. 66.32a प्रहर्षयस्ता हरिवीरवाहिनीम् IV. 66.38c प्रहर्षयुक्ता बहवस्तु वानरा: VI. 7I. I09a प्रहर्षवशमापन्ना VI. II3.170 प्रहर्षाच्च महातेजाः VI. I03.25c प्रहर्षिताः केतकिपुष्पगन्धम् IV. 28.28a , पांसुसमुत्थिताझाः IV. 30.38b प्रहर्षिता रामपराक्रमेण VI. 67.172b ,, सारसचारुपङ्क्तिः IV. 30.47b प्रहर्षितो रामदिदृक्षयाभवत् VI. I25.46c प्रहर्षितौ सुसंरब्धौ VII. 22.22c प्रहर्षेण तु जानकी V. 35.84b ,, समन्विताः IV.67.2b प्रहर्षेणाभिचोदितः V. 56.38b प्रहर्षेणावरुद्धा सा VI. II3.14c प्रहर्षोदितचेतसः I. 16.30d प्रहसन्क्रोधमूर्छितः III. 29.15d प्रहसन्तीव राजानम् II. 69.16a प्रहन्त्यप्रतः स्थिताः VI. 35.28b प्रहसन्त्येव भात्येषा IV. 27.2IC प्रहसन्त्यो महास्वनाः V. 27.32b प्रहसन्निदमब्रवीत् VI. 65.42d प्रहसन्निव काकुत्स्थः VI. I07.22a प्रहसन्प्राह दैत्येन्द्रः VII. 12.18a प्रहसन्मुनिपुङ्गवम् I. 2.30d प्रहसन्मेघसंकाशः V. 22.43e प्रहसनराक्षसाधिप: VI. 65.gd प्रहसनराघवो वचः VII. 87.Id , वाक्यम् VII. 38.21a प्रहसन्रावणं मुहुः VII. 34.34d प्रहसँलक्ष्मणोऽब्रवीत् IV. II.69b प्रहसन्स खरस्तदा III. 23.1gb प्रहस्तकरमुक्तस्य VII. 32.44c प्रहस्तं च निषूदितम् VI. 60.14d ,, तं हि निर्यान्तम् VI. 57.40c ,, ताडयामास VI. 58.39c | प्रहस्त तेनैव विकत्थसे त्वम् VI. 14.13d " , , , , ,, 14d प्रहस्तं द्वारि राक्षसम् VI. 36.17b ,, पतितं दृश्वा VII. 32.48a प्रहस्तः परमायत्तः VI. 58.49c प्रहस्तं पर्यवारयन् VI. 57.24b प्रहस्तपुत्रे निहते महाबले V. 44.20b ,, समरे सुदुर्जयम् V. 42.44d प्रहस्तः पुरतः स्थितान् VI. 57.17d , प्रमुखे राज्ञः VI. 12.4c प्रहस्तं प्रतियोद्धा स्यात् VI. 37.26c प्रहस्तः प्रश्रितं वाक्यम् VII. II.I3a , प्रेषयन्क्रुद्धः VII. 32.43c प्रहस्तं मन्त्रिसत्तमम् V. 50.4b प्रहस्तमभिगर्जताम् VI. 58.6d प्रहस्तमवधीन्नील: VI. 126.50a प्रहस्तं युद्धकोविदम् VI. 57.4d प्रहस्त राजा च महोदरश्च VI. 14.10a प्रहस्तक्शमेष्यति VI. 57.10d । प्रहस्तं वाक्यकोविदः VII, II.22b. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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