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________________ प्रशशंसुः पुनः पुन: VII. 40.13d प्रशस्तव्यौ I. 4.17a प्रशशंसुः सुराः सर्वे V. 1. 12gc प्रशशंसुस्तदा हरिम् V. 1. 161d प्रशशाम हते तस्मिन् VI. go. 86c प्रशंसन्तश्च वालिनम् IV. 55.18d प्रशंसन्ति द्विजर्षभाः I. 14.17b در "" स्म राघवम् VII. 95.15b प्रशंसन्तौ जनार्दनम् VII. 9.22d " वनौकसम् V. 1.83d प्रशंसामि च शोभने II. 52.87b प्रशंसा न जानीमः VII. 38.2gc प्रशंसां वक्तुमीदृशीम् VII. 38.2gd प्रशस्तः कुशिकात्मजः I. 34.22b प्रशस्तमन्नं गुणवत् II. 3. 14a प्रशस्तमृगयूथानि III. 8. 13c प्रशस्तो यज्ञकर्मणि I. 39.6b प्रशस्य च पुन: पुन: VII. 64.1b तु प्रशस्तव्याम् V. 16.1a पवनात्मजम् VI. 1or 41b " प्रशस्य पुरुषर्षभम् I. 56.38b बलवीर्यतः III. 54.rgd प्रशस्यमानः सुकृतेन कर्मणा VI. 58.5gb 33 सुरसिद्धसंधैः I. 26.36b स्वकृतेन कर्मणा VI. 118.20b प्रशस्य मानो सर्वत्र I. 4. 28c प्रशस्य मुनिशार्दूलम् I. 34.23c प्रशस्यैनं बहुविधम् VI. 104.240 प्रशाखा यस्य सुग्रीव: VI. 99.40 प्रशाधि त्वं वसुंधराम् II. 4.43b मां सोमसुत VII. 89.6c " राज्यं धर्मेण VII. 82. 13c प्रशान्त गीतोत्सव नृत्य वादना II. 48.37a प्रशान्तो गुरुवर्ती च VI. 27. IIC प्रशान्तं च जगत्सर्वम् VII. 86.1ga " " :> "" Jain Education International ७१२ प्रशान्तं तव तेजसा VII. 71.8d प्रशान्त पीडाबहुल: VI. 90.83a प्रशान्तमरुजे जगत् VII. 84.16d प्रशन्त मारुतोद्भूताम् II. 114.70 दा प्रशान्तमृगयूथथ III. 11.80c प्रशान्तं सर्वमेवासीत् I. 7.150 प्रशान्तः सहसाऽनघ IV. 30.26d प्रशान्तहरिणाकीर्णे II. 34.51c प्रशान्तहरिणाकीर्णम् I. 51.24c III. 12.17a प्रशान्ताध्याय सत्कथा II. 48.34b प्रशान्ता रजनीचराः III. 11.83d प्रशान्ता वसुधाधिपाः III. 65.10b प्रशान्ता रामतेजसा VI. 68.3b प्रशासति नराधिपाः II. 52.25b प्रशासत्सर्वकार्याणि VII. 38. IC प्रशासन्तं वसुंधराम् VI. 125.32d प्रशास्ता च न्यषीदत II. 91.4od प्रशास्तु वसुधामिमाम् II. 18.38b वसुधां सर्वाम् VI. 125.170 होनो भरतस्त्वया सह II. 12.106b प्रशुची परमं जाप्यम् I. 29.32a प्रशुशोच सुदुःखिता V. 58.85d प्रशुश्रुवस्य पुत्रोऽभूत् II. 10.32c प्रशोभयत वैदेही III. 52.300 प्रथितं धर्मसंहितम् IV. 17.14d 36.1b 55.1b प्रश्रितः प्रथिताञ्जलिः III. 61.3od " प्रथितं प्रियवादिनम् V. 32.2b हेतु संहितम् V. 39.32b 56.14b 68.16b " " ܕܕ در " در " " "" " For Private & Personal Use Only "" މ " " प्रश्रितेन विशेषतः IV. 36.13d प्रष्टव्या चापि सीतायाः IV. 43.33a www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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