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________________ पुनः पर्वतसंनिभः V. 53.38d ,, पश्यन्ति काकुत्स्थम् VI. 93.26c ,, पादौ ग्रहीष्यामि II. 34.29c ,, पुनरथोत्पत्य V. 38.23a , पुनरधःशिराः II. 69.Iob ,, पुनरुदारधीः I. 52.18d , पुनरुदैक्षत VI. 9I.Iod ,, पुनरुवाच तम् II. 40.8d ,, ,, ,, II. 52.21d ,, पुनश्चापि निरीक्ष्य सस्वजे II. 25.44d ,, पुनश्चोत्तमसान्त्ववादी V. 27.46b ,, पुनश्चोदयतीव हृष्टः V. 27.46d ,, प्रकृतिमापेदे V. I.197c ,, प्रजापतिः प्रीतः VII. I0.33c , प्रतिनिवर्तते III. 42.25d , प्रत्यनुतप्यसे II. I2.39b ,, प्रत्यागमिष्यति II. 52.84d प्रत्युपवेश्य तान् VI. 9.7d प्रविष्टं दृष्ट्वा तम् II. 44.23a. , प्राप्तमिदं मया IV. 38.25d ,, प्राप्ते वसन्ते तु I. I3.1a ,, प्राप्येव मेदिनीम् V. 16.23d , प्रियायाः परमं परिश्रमम् III. 60.38d ,, प्रोवाच राजानम् VII. 65.34c पुनरट्रैस्तदा चक्रुः VI. 69.56c पुनरन्तःपुरं गते V. 23.2b पुनरन्तर्गतमना I. 2.30a पुनरन्तर्हितोऽभवत् III. 44.IId पुनरन्यानि भाषसे II. 12.42d पुनरन्या मनस्विनः V. II.40b पुनरन्यौ भविष्यतः IV. 62.2b पुनरप्यर्थकोविदः VI. 4.8d पुनरप्यहमार्या ताम् V.67.25a पुनरप्यहमेष्यामि II. 70.15c पुनरप्यागतस्तत्र V. 67.15a पुनरप्यागतो वीर VII. 52.9c पुनराकारयामास II. I3.2c पुनराकाशमाविश्य I. 43.29a पुनराख्यायिका जल्पन् I. I.88a पुनरागन्तुमुत्सहे IV. 67.16b पुनरागमनाय च II. 34.31b , तु V. 39.22b वै V. 68.5b पुनरागम्य राक्षसाः VI. 60.88b पुनरायात्पुरोत्तमम् VII. 51.24d पुनरायान्महाकपिः I. I.77d पुनरायान्महातपाः I. 41.22d „ VII. 49.190 पुनरायान्महाबाहुः VII. IOI.16c पुनरावृत्ततोयां च V. 14.31a पुनरावृत्य सहसा IV. 46.16c पुनराश्वासयन्प्रीत IV. 59.5c पुनरुक्तः ससंभ्रमम् V. 68.1b पुनरुत्पत्य वेगेन VI. 89.5re पुनरेव च तस्थतु: VI. I07.35b , जगाम स: IV. 31.28d ,, ततो दूरात् III. 44.12a ,, तथा स्रष्टुम् V. 51.39c ,, निवर्तते III. 42.27b निवर्तने II. 22.15d निशाचरः VI. I02.20d ,, निषीदति III. 42.26b प्रदृश्यते VI. I07.56d ,, प्रपत्स्यते II. 12.84d ,. प्रशंसितः III. 22.7b पुनरेवं ब्रुवाणं तम् II. I07.Ia पुनरेव भवेदिति V. 53.14b मया दृष्टः V. 27.23a , महातेजाः VI. 73.49c , महाबाहुः II. 52.9ra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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