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________________ २१४ किमेवं वाश्रमं कृत्वा VI. 63.23c किरन्तु शतशो नराः VI. 127.10b किमेष भगवानन्दी V. 50.2c । किरन्त्यर्जुन मूर्धनि VII. 32.65d किमेष रजनी चरः VI. 18.5b किराता द्वीपवासिनः IV.10.28b , , VI. 18.2.b किरातारतीक्ष्णचूहाथ IV. 40.27c ,, वाक्यं भरतोऽब राघवम् II. I04.31a किरीटकूट उज्वलितम् VI. III.35c किं वैष्णवं वा कपिरूपगेय V. 54.37a. किरीट मुष्टानि सकुण्डलानि VI. 70.66b १, वो युक्तम नन्तरम् VI. 6.4b किरीटाग्रे च तं हरिम् VI. 59.70b ,, व्यलीकैरतु तान्सर्वान् V. Co.ita किरीटिनमरिंदमम् VI. 67.136b ,, शक्यं कर्तुमेवं हि III. 53.10a किरीटिनं महाकायम् VI. 6I.IC ,, शक्य मिह कर्तुं वै VII. 19.26c किरीटिन: श्रिया जुष्टाः VI. 69.35a किंशुकैश्च सुपुष्पित: V. 15.8d किरीटी परिघायुधः III. 38.2d किं शेषं गमनं तत्र V. 64.150 ,, मृष्ट कुण्डल: VI. 71.5b ,, शेषमिहलोकस्य VI. 109.a ,, हरिलोचनः VI. 61.5b ,, शेषे निहतो भुवि VI. I09.2d किरीटेन ततः पश्चात VI 128 67a ,, शेषे रणमेदिनीम् VI. III.84d ,, विराजता VI. 6), 27b ,, ,, रुधिरावृत: VI. III.7sd किरीटेनार्कवर्चसम् VI to.30b ,, सखे नानुमोदसे II. 69.6d किरीटे राक्षसर्षभम् VI. 72.45d ,, समर्थ जनस्यास्य II. 57.14d किरीट रत्न शोभितम् VI. 128.64b ,, समर्थितमस्येति VI. 8I.I3a किल्विषं त्वं नरेन्द्राणाम् II. 12.42a ,, समीक्षामहे वयम् II. 68.3d ,, प्रतितिष्टसि V. 24.7d ,, संभ्रमाद्धितं कृत्स्नम् V. 63.3a किशोरवद् गुरुं भारम VI. 128.3c ,, स्यात्कृच्छ्रतरं ततः III. 7.2Id किशरीवत्पथं गता II. (9.37d ,, स्यात्मुखतरं तत: II. 30.1 d किशोरो मातरं यथा II. 4010) ,, स्याद्धर्मपथे स्थितम् II. 45.26d किशोरं वडवा यथा ]I. 20.20d किंस्वित्कृतमिदं त्वया V. 55.2d किश:र्य इव वाहिना: V. 9.46d किंस्विदधव नृपतिः II. 18.8c किष्किन्धा गिरिगह्वरे IV. 26.41d किंस्विदित्युपशङ्कितम् II. 65.IId किष्किन्धा गिरिसकटे IV. 31.16d किंस्विद्वाणोऽपि वासुर: V. 50.3d किष्किन्धा चित्रकानना IV. 27.26b किंस्विद्वीर्य तवानार्य V. 58.72c VI. 123.22d किं हि कृत्वा प्रभावयेत् II. 105.23d किष्किन्धाद्वारमागतः IV. 9.5b ,,, , विषण्णस्वम् II. 30..a किष्किन्धानिलयाः सदा VI. 28.50 ,, ,, संशयमापन्ने III. 45.8c । किष्किन्धां तां दुरासदाम् IV. 31.26d कियानिति च शंस मे II. 92.8d , त्वरया प्राता: IV. 37.34c किरञ्शरशतै कैः V. 46.24c ,, नगरीमितः V. 13.36b किरन्ती राघवरथम् VI. I08.24c किष्किन्धामतुलप्रभाम् IV. II.2Id Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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