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________________ ६२० न्यवेदयत चात्मानम् II. 54.13a न्यस्य शेते शुभस्तनी V. I0.39b , राघवे V. 67.Id न्यस्याम जनकात्मजाम् V. 60.12b , रामाय VI. 91.6c न्यायतः पुरुषर्षभः I. 14.45b , , VII. I03.3c , प्रतिपूज्य च I. I3.2d न्यवेदयत्ततः सर्वम् II. II9.14a , शास्ति मेदिनीम् II. II8.27d न्यवेदयत्सहस्राक्षः I. 46. I0c न्यायतः सुसमाहितः I. I0.31b न्यवेदयदनुप्राप्तम् VI. 32.35c न्यायतो मम राघव IV. 9.2Id न्यवेदयदमेयात्मा I. I.78c न्यायवादी यथावाक्यम् III. 45.32a , , 50.22c , विभीषणः VI. 16.17b न्यवेदयद्यथावृत्तम् I. 4I.23c न्यायवृत्ता यथान्यायम् III. I.23c न्यवेदयन्त त्वरितम् II. 20.13c न्यायवृत्तं सुदुर्वृत्ता III. IT.IIC न्यवेदयन्पुरी रुद्धाम् VI. 42.Ic न्याय्यवृत्तेन राघव III. 7I.33b न्यवेदयन्भर्तरि युद्धकाङ्क्षिणि VI. 32.44d न्यायेन रघुनन्दन III. 7I.32b न्यवेदयन्यथावृत्तम् I. 70.70 , राजकार्याणि VI. 12.30a न्यवेदयत्रामबलं महाबलाः VI. 29.29d न्याय्यं स्म सह वैदेह्या V. 59.6e न्यवेशयत्छशिविमले गिरौ पुरीम् VII. II.50b न्याय्ये स्थितः कालयुतं च वाक्यम् III. 63.18d न्यवेशयदनुत्तमम् VII. 79.17d न्यासं दत्त्वा पुनः पुनः I. I.37d न्यवेशयंस्तश्छिन्देन II. 83.25c ,, निर्यातयस्व मे VII. 59.10d न्यवेश्यत विनीतवत् II. 42.28d ,, निर्यातितं मया VI. 127.54d न्यषीदरसचिवासने II. 91.39d न्यासभूतमिदं राज्यम् IV. 10.9a न्यसेयुः संवृते हि माम् V. 37.58b न्यासभूतं तदा न्यस्तम् I. 66.13a न्यस्तदण्डा वयं राजन् III. I.21a न्यासभूता मया पुत्र VII. 59.IIa न्यस्तदेहो महाबलः III. 4.24b न्यासभूतासि वैदेहि III. 45.17c न्यस्तदेहश्च वः पिता II. 78.9b न्यासरक्षणतत्परः III. 9.19b न्यस्तमायतलोचना II. 104.8d , , ,, 20d न्यस्त रामेण वीक्ष्य सा II. I04.9b न्यासोऽयं तस्य भगवन् I. 66.8c न्यस्तशस्त्रपरिच्छदः II. 90.2b पक्वतालोपमस्तनी III. 60.18b न्यस्तशस्त्रे पितरि मे I. 75.23c पक्वैरिव वसुंधरा VI. 4.9If न्यस्तशस्त्रौ गृहीतौ च VI. 25.20c पक्षपातेन वा रिपोः VI. 36.6b न्यस्ता बहूनि वर्षाणि VII. 30.26c पक्षयुक्त इवाद्रिराट् V. I.I73b , मयि महात्मना III. 45.I7d पक्षयोः पतनं कथम् IV. 60.21b न्यस्ता सागरतोये वा IV. 17.5ra पक्षयोर्यदलं तस्य IV. 66.6a न्यस्य चापं निवर्तस्व VI. 71.53c पक्षलाभो ममायं वः IV. 63.13a न्यस्यतां कलशस्तात I. 2.6a पक्षवन्तः पुरा तत्र V. 58.14c न्यस्य रामः सुदुः खातः II. I03.29c | पक्षवातथलोद्भूतः III. 8.20a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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