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________________ निषादाधिपतिं गुहम् II. 85.1b , , ,, 89.2b ,, प्रियम् I. I.29d ,, ब्रूहि VI. 125.4c निषादाधिपसंवादम् I. 3.140 निषादेन निपातितम् I. 2.13b..... निषादैः स्वयमर्जितम् II. 84.17b . निषिद्धः पुनर ब्रवीत् II. 31.6d निषीदेति ततोऽब्रवीत् IV. 38.rod निषेदुः काञ्चनीषु ते VII. 60 12b निषेदुर मितौजसः I. 31.21b निषेदुर्नियता नृपाः II. I.5od निषेदुर्दीनमानसाः IV. 48.23f निषेदुई रियूथपाः VI. 4.10gd निषेदुश्च यथार्हतः I. 18.49b निषेदुस्तदनुज्ञाता III. 5.26c निषेवमाणास्ते जग्मुः II. 68.12c निषेवेतात्मवाँल्ले के VI. 63.12c निष्कम्पपत्रास्तरवः III. 48.9a निष्कलिविरुचस्तथा I. 28.7d निष्काभरणभूषितः VI. 65.28b निष्कुटश्चैव देशोऽयम् II. 84.16a निष्कुटान्तररथ्याश्च V. 12.14a नि कूजन्तः शुभा गिरः II. 95.IId निष्कूजन्सायकहतः VI. 31.30d निष्कू जमानशकुनि III. 2.3a निष्कूजमिव तद्वनम् II. 59.6d , भूत्वेदम् II. 93.14a निष्कृतिर्विहिता सद्भिः IV. 34.12c Fareefara afecafa VII. 53.21d निष्कृष्य कोशाद्विमलम् VII. 76.4c निष्कृष्यैरावताइन्तम् VI. 61.17c निष्कम त्वं मया सह IV. 36.19b निष्क्रमंश्च पुनः पुनः V. 57.8b निष्कमो वा प्रवेशो वा VI. 72.12a / निष्क्रम्य तद्वानरसैन्यमुग्रम् VI. 59.rob ,, 67.93b ,, स विशांपतिः III. 75.Tod निष्क्रम्यान्तःपुरात्तस्मात् II. 19.29c , III. 54.18d निष्क्रम्योदप्रसत्त्वास्तु IV. 31.27c निष्कयं किंचिदेवेह I. 14.48c निष्क्रान्तजिह्वोऽचलसंनिकाशः VI. 69.9ob निष्कान्तमात्रे भवति II. I02.6a निष्कान्तस्य जनस्थानात् III. 7I.22a निष्क्रान्ता गहने वरा VII. 35.21d निष्क्रान्तावाश्रमाद्गन्तुम् III. 8.19c निष्क्रान्ते राक्षसेन्द्रे तु V. 23.2a निष्क्रान्तो यमसादनात् VII 22.49d , वरुणालयात् VII. 23.52d , विषयात्तस्मात् VII. 81.12c निष्कामति कृताञ्जलौ II. 20.1b , , ,, 4I.Ib निष्कामतन्नरेन्द्रस्य VII. 19.IIC निष्क्रामन्तमुदीक्ष्य यम् II. 44.18b निष्कामं नेह पश्यामि IV. I0.22c निष्क्रियं धर्मवर्जितम् VII. 35.52b निष्टनन्निव चागत्य VI. 91.5a निष्टनन्विषसाद ह II. 77.8d निष्टप्तकनकप्रभाः VII. 24.8d निष्टप्तं छिन्नशोणितम् II. 56.27b निष्टप्तमिदग्निना । निष्टां नयत तावत्तु III. 5.22c निष्ठानवरसंचयैः II. 91.67b निष्पतन्तं सुदुर्दशम् VII. 33.5b निष्पतन्ति ततः सैन्याः VI. 42.37a , पतत्रिणः IV. 52.12d , स्म सर्वशः IV. 50.16b निष्पतन्तो महोत्साहाः VI. 53.19a निष्पतम्प्रविस्तथा V. 1.172b Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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