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________________ निनदन्तः स्त्ररान्घोरान् VI. 57.29c निनदन्तश्च विश्वरम् VI. 73.57b निनदन्ति प्रहर्षिताः VI. 68. 15d निनाद विवृत्तास्यः VI. 77.4c निनादं गिरिगह्वरे VI. 92.12d च महात्मनः V. 57.24b , निनादस्तत्र शुश्रुवे II. 76.21 निनादस्य च संरम्भ: IV. 15.12 निनादः श्रूयते मद्दान् VI. 57.43d निनाय वेगाद्धिमवन्तमेव VI. 74.73C निन्दनीयश्च साधुभिः VI. 87.13b निन्दाम्यहं कर्मकृतं पितुस्तत् II. 109.33a निन्दितः सर्वलोकेषु II. 17.14 निपतन्तः समन्ततः VI. 22.58b समाहिताः VI. 89.4b " निपतन्ति रणाजिरे VI. rog. 15d हता यावत् VI. 17.9c " निपतन्त्या च शिलया VI. 82. 120 निपतिष्यन्ति वेगिताः IV. 5.27b निपतेच्च तपस्विनी II. 63.26b निपतेन्मयि मानद VII. 63.7d निपत्य गगनाद्भूमौ V. 64.3c " "" " निपत्योरसि गृध्रास्ते VI. 103.21a निपपात तद्युतिः VI. 102.66d गिरेः शिरः VI. 70. 22b " " निपपात गिरेस्तस्य V. 57.29c तदा कुम्भ: VI. 76. goc भूमौ VI. 83. IOC " 33 " तीरे च महोदधेस्तदा V. 1. 2020 " मम शृङ्गेषु V. 1. 105a हरिपुंगव: VI. 41.75b ܕܝ 23 " " 97.14c " 33 मत्तः VI. 70.65a त्रिकूटाभः VI. 76.41c धनाधिपः VII, 15.33d Jain Education International ५९१ निपपात पुनर्भूमौ V. 46.31c भृशं पृष्ठे III. 51.33C महाकपिः V. 1. 184b 5 " " " महावेगः V. 46.27C " ,, महाबाहुः II. 72.170 "" महीतले IV. 16.36d VI. 67.25f महीतलम् VI. 127.38d "> 39 महीं ततः IV. 61.14b निपपातैर्षभो भीमः VI. 67.27c " "3 निपपात विभीषण: VI. 19.2d शिला भुवि VI. 52.2gb " " महागृध्रः III. 51.43c महातेजाः VI. 70.420 " " " स लक्ष्मणः VII. 47.6d सह प्राणैः VI. 108.2IC स्थितः शैलः VII. 32.470 हृतः खरः III. 30.28d निपपाताग्रतः प्रभोः VI. 61.24b निपपातान्तरिक्षाच्च VI. 108.28a निपपातावशो भूमौ III. 67.22a निपपाताशु राक्षस: VI. 76.91b निपपातैव दुःखेन II. 40.36c निपातयामास तदा महात्मा VI. 69.93c निपातयित्वा हरिसैन्यमस्मान् VI. 73.64c निपातितमहावीराम् VI. 59.11a 76.37a निपातितान्प्रेक्ष्य रणे तु राक्षसान् III. 20.25a निपातितो भूमितले मया तु VI. 15.6b निपातितौ कोऽत्र विषादकालः VI. 74.4d निपातितं रावणवेगमर्दितम् III. 51.46b निपातितः शरो यत्र VI. 22.33c निपात्यमानेषु च राक्षसेषु VI. 69.65c निपात्यमानैरिव नीलपर्वतै: VII. 7.54d निपात्यमानैर्ददृशे निरन्तरम् VII. 7.54C "" 72 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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