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नास्माकं शापमोहितः VII. 36.34b नास्मिन्नर्थे महाराज VI. I04.13a नास्मि विप्रकृता देव II. II.2a नास्मि संप्रति वक्तव्या II. 27.10c नास्मिंश्चिरं वत्स्यसि देवि देशे V. 39.54a नास्य क्रोधः प्रसादश्च II. 2.45c
, देवा न गन्धर्वाः I. 31.9a ,, प्रत्यकरोद्वी र्यम् VI. 103.28c ,, मृत्युभविष्यति VII. 36.15b , वेगगतिं कश्चित् VI. 80.35a ,, शक्यं बलं रूपम् VI. 28.16c
, दैन्यं कृतं किंचित् II. 60.8a नास्यान्तमवगच्छामि II. 84.2c नास्यापराधं पश्यामि II. 21.4a नास्यामित्रैर्गतं गच्छेः IV. 22.22a नास्रग्वी नाल्पभोगवान् I. 6.1ob नाहत्वा समरे शत्रून् VI. 104.25c
, , शत्रुम् VII. 27.18a नाहमज्ञासिषं युध्यन् VII. 24.34a नाहमत्रामिचिन्तये III. 36.15b नाहमन्येन राघव III. 71.18d नाहमर्थपरो देवि II. I0.20a नाहम मि संस्कर्तुम् VI. III.94a नाहमस्मि तथा देवि V. 34.40c नाहमस्मिन्प्रभुः कार्ये IV. 40.13a नाहमात्मनि संतापम् VI. 63.40c नाहमिच्छामि निघृणाम् II. 13.18d नाहमेतेन तुष्टश्च II. 90.16c नाहमेवं हि शोचामि IV. 7.6c नाहमापयिकी भार्या V. 21.6c नाहमौपयिकं मन्ये VII. 77.20e नाहस्ताभरणो वापि I. 6.IIC नाहारयति संत्रासम् II. 60.20c नाहितं किंचिदाचरेत् II. 97.13d नाहुष त्वं दुरात्मवान् VII. 58.23b .
| नाहुषः परया मुदा VII. 59.8b नाहुषस्य पुरस्कृता VII. 58.8b नाहुषेणैवमुक्तस्तु VII. 59.7a नाहं कथ्यः कदाचन II. 26.24d ,, जानामि कुण्डले IV. 6.22d ,, जानामि केयूरे IV. 6.22c ,, जीवितुमुत्सहे II. 30.32d " , , 66.4d " , V. 26.4d
VI. II6.18d , ज्येष्ठं नरश्रेष्ठ I. 61.16a ,, तत्प्रतिगृतीयाम् II. 97.4c ,, तदपि रोचये II. 27.21f , , , , 82.15b , तामनुशोचामि IV. 7.7a ,, तेषां न ते मम II. 42.7b ,, तं प्रतियोत्स्यामि VII. 27.17c , त्वाममिजानामि IV. 17.23c , त्वामहितं वदे VII. I00.13f ,, धर्ममपू ते II. 21.36a ,, पश्यामि कांचन I. 57.21d " , राघव II.96.23d , पुत्रो महात्मनः II. 64.13b , भृत्यविनाकृतः VII. 89.16b , राजेति चोक्त्वा तम् II. 81.4c ,, विराधो विज्ञेयः VI. 67.146c ,, शक्या त्वया स्प्रष्टुम् III. 47.37c , , महाभाग II. 27.15c ,, शतसहस्रेण I. 53.IIC , समवबुध्येहम् II. 9.40a ,, सुतस्तवेत्युक्त्वा VII. 57.5c , स्प्रष्टुं स्वतो गात्रम् V. 37.62c , स्वप्नमिमं मन्ये V. 34.22a ,, इन्मि महासुरम् VII. 85.4d निकामपूर्णा च बभूव सा पुरी VII. II.49c
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