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________________ ५४७ न चाहं यौवराज्येन IV. 53.17c | न चेत्साम्ना प्रदास्यन्ति III. 65.15c ,, ,, हरिराज्यस्य IV. 21.14a ,, चेदं ग्रहणं प्राप्य VI. 25.20a , चाहुतमभूत्तत्र I. I4. I0a , ., व्यर्थजीवितम् VI. 68.18d , चाहृष्यन्न चामोदन् II. 48.4a ,, चेद्दास्यति मैथिलीम् IV. I.IIgd ,, चिन्तयति तं वाली VII. 34.15c ,, चेद्दास्यसि मे वरम् II. 7I.21b ,, , राज्यार्थम् IV. 33.44a , चेदितो गच्छति राघवो वनम् II. 9.64d ,, , विक्रमम् IV. 59.4d , चेन्द्रजिद्दाशरथिं प्रसोढुम् VI. 14.15c , चिन्तयामास धृतिं विमुक्तवान् III. 63.200, चेद्वहसि दुर्मते VI. 104.7b न चिन्तयाम्यहं वीर्यात् III. 23.20a ,, चेयं तव काकुत्स्थ I. 76.19a ,, चिन्तयितुमर्हसि III. 45.20b ,, चैकमत्ये श्रेयोऽस्ति VI. 6.14c ,, चिन्ता स्यान्नृपात्मज IV. 30.76d ,, चैकस्त्रीपरिग्रहः VII. 26.40b ,, चिन्तितं त्वामनृतेन यो जयन् II. 34.58c ,, चैकस्मिन्हते रामे I. 75.9c ,, चित्रं स्त्रीषु मैथिलि III. 45.29b , चैच्छत्पितुरादेशात् I. I.37a ,, चिरं पापकर्माण: III. 29.7a , चैतकर्म रामस्य VI. III.8a ,, ,, प्रवसाम्यहम् VII. 72.12d ,, चैतदाश्चर्यतमम् II. 34.38a , ,, वर्तयिष्यति II. 51.12b ,, चैतदिष्टं माता मे II. 90.16a ,, ,, ,, ,, 86.13b ,, चैतद्विद्यते क्वचित् III. 9.6b ,, चिराचीरवासास्त्वाम् III. 50.24c ,, चैतन्मे प्रियं पुत्र II. 34.36a ,, चिराच्छ्रोष्यसे स्वनम् V. 68.27d ,, चैत्ररथसंश्रये III. 43.26b ,, चिरात्तं वधिष्यामि IV. 39.7a ,, चैनं किंचिदब्रवीत् VII. 6I.I8d ,, चिरात्वं विमोक्ष्यसे IV. 6.5b , ,, पर्यवारयन् IV. 33.3d ,, चिरात्प्राप्यते लोके III. 29.9a ,, चैनमभिसंप्रेक्ष्य II. 39.2c ,, चिराद्र्क्ष्य से रामम् V. 34.37a ., चैनं मायया छन्नम् VI. 46.8c , , ,. 39.44c ,, चैनमाश्वासयसि VI. III.64a ,, चिराद्रधुनन्दनः V. 56.18b चैव चक्रे गमनाय सत्त्ववान् II. I06.33c ,, चिराद्विनशिष्यति V. 21.12d ,, चैव तां पश्यति चारुदर्शनाम् V. 12.Id ,, चिरादेव मैथिलि VI. 33.33b ,, चैव देवी विरराम कूजितात् II. 60.23c ,, चीरमस्याः प्रविधीयतेति II. 37.34c ,, चैव मधु सेवते V. 36.41b ,, चुकुशु नृतमाह कश्चित् VI. II.30a ,, चैवमवबुध्यसे IV. 33.43d ,, चुक्षुमे न व्यथते सुरारिः VI. 67.15od ,, चैव मानुषं रूपम् VI. 37.33a ,, चुक्षुभे नापि चचाल राजा VI. 59.137b ,, ,, रामः प्रविवेश शोकम् II. 18.41b ,, चेच्छरणमभ्येषि VI. 41.67c ,, ,, रामोऽत्र जगाम विक्रियाम् II. 19.40c , चेच्छाम्यभ्यसूयितुम् IV. 15.22d ,,. रावणस्यान्तः VI. I07.58a ,, चेत्पश्यामि जानकीम् V. 13.4Id , ,, संप्रसुप्तोऽहम् II. 15.26c ,, सत्कृत्य वैदेहीम् VI. 41.81c ,,, हि भविष्यति III. 31.31d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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