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________________ धैर्यवान्कपिकुञ्जर: V. 13.47b धैर्यशौर्यसमन्वितम् VII. 62.Iob धैर्यस्योपरि वर्धते III. 54.23b धैर्याद्वचनमब्रुवन् II. 99.30d थैर्जितानि प्रवराणि लोके V. 28. Igb धैर्येण शोर्येण च तेजसा च VI. 15.3b ,, सुसमाहितः VII. 52.16b ,, सुसमाहितान् VII. 90.6d ,, हिमवानिव I. I.Id धौतनिर्मलभाजनम् II. 91.35b धौतामलक्षौ मपट प्रकाशेः IV. 30.5IC ध्यात्वा निःश्वस्य चायतम् VI. III.71b ,, पुनरुवाचेदम् VI. I.I5a ,, भयातु वैदेहीम् III. 64.9c ,, मध्यं जगामाशु II. 23. IC ,, मुहूर्त काकुत्स्थम् IV. II.73c ,, ,, तामाह VII. 48.21a ,, ,, धर्मात्मा III. 13.12c , रामेऽति निःश्वस्य II. I2.54c ध्यानं जगाम तत्रैव II. 87.1c ध्यानतत्परतां गतः VII. 30.17d ध्याननिदरशैलेन II. 85.Iga ध्यानं मलिनमम्बरम् V. 20.8b ध्यानमूकत्वमागता: VI. 58.58d ध्यानं विवेश तच्चापि VII. 2.23c ध्यानशोकपरायणः VI. IOI.9d ध्यानशोकपरायणाम् V. 19.8b ध्यानशोकपरीतात्मा V. I3.49c ध्यानं संप्रविवेश ह VII. 26.52b ध्यानसंविग्न हृदया II.7I.42a ध्यानेन च भयेन च V. I9.20b ध्यायन्तमिव गह्वरैः V.56.32b ध्यायन्ति नृत्यन्ति समाश्वसन्ति IV. 28.27b ध्यायन्ती तामिवास्वस्थाम् III. 55.33c ध्यायन्त्यस्राविलेक्षणाः III. 61.5d ध्यायन्नारायणं देवम् II. 6.3c ध्यायमाना जनार्दनम् II. 4.33d ध्रियमाणं शिरोमिस्तु VII. 97.18a ध्रियमाणमिवाकाशम् V. 2.23c ध्रियमाणाभिरप्रतः V. 18.22d ध्रियमाणेन मूर्धनि IV. 38.12d ध्रुवं तु भरतं रामः II. 8.27a ,, ,, रक्षोबहुला V. I3.6oa ,, त्वां भजते लक्ष्मीः VI. 33.14C ,, नन्दति सुग्रीवः IV. 27.28c ,, न सीता ब्रियते यथा न मे V. 12.2c ,, नो हिंसते राजा IV. 53.16c ,, परिभविष्यति II. I3.14b ., परिष्वज्य सरोरुहाणि IV. 28.421) ,, प्रणष्टो भरतो भविष्यति II. 8.30b ,, प्रवेक्ष्यत्यमरारिवासम् VI. 73.68c , प्राप्नोत्यकण्टकम् VI. 41.68d ,, प्रायमुपासिष्ये V. 12.8c ध्रुवमद्य पुरी राम II. 53.29a ,, महाराजः II. 53.6a ध्रुवमद्येव मां राजा II. I6. Igc ध्रुवमयैव संहृष्टाः VI. 68.16a ध्रुवं मरणमेव हि II. 20.41d ध्रुवमश्नन्ति मेदिनीम् VII. 40. IId ध्रुवं मां प्रातराशार्थम् V. 26.33a ध्रुवमेध्यति जानकी V. 14.45d ,, , ,, ,, 49b ध्रुवं रवाः संप्रति संप्रनष्टाः IV. 30.43d ,, लोकविनाशाय VI. 61.23a ,, वर्षशतात्परम् II. 8.16b ,, विशिष्टा गुणतो हि सीता V. 9.73b ,, सर्वे प्रदक्षिणम् VI. 4.48f , ह्यकाले मरणं न विद्यते II. 20.51d | ध्रुवः कार्यफलोदयः IV. 44.Iod ,, परिभवश्च मे II. 12.94d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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