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________________ तां मालां काञ्चनीं दत्त्वा IV. 22.19a ,, मुमोच च मूर्छिताम् II. 78.24d ,, मुनि पातयामास VII. 27.24c ,, मृत्युपाशप्रतिमाम् III. 18.18a ,, रक्षा जगृहुस्तां च VII. 66.10a ,, रत्नपूर्णा बहुसंविधानाम् VI. 39.27a ,, रत्नवसनोपेताम् V. 3.18a , रम्यजलसंपूर्णाम् II. II3.22a ,, राक्षसगणैर्गुप्ताम् VI. 57.3a ,, राक्षसेन्द्रस्य विहारभूमिम् VI. 48.37b ,, रात्रिमवसत्सुखम् II. 54.35d ,, रात्रिमुषितं रामम् VI. I2I.Ia ,, रात्रिमुषिता वयम् VI. 123.16b ,, रात्रिमुषितास्तत्र VI. 39.1a रात्रिं समुपाविशत् VII. 82.4d ,, रुरोध ससायकैः I. 26.24b ,, लक्ष्मणस्तीर्थवतीम् III. 64.3c ,, लङ्कां तरसा हन्तुम् V. 59.7c " , , , ,, 60.6a ,, लतामिव वेष्टन्तीम् III. 52.7a ताँलक्ष्मणः काञ्चनचित्रपुङ्खः VI. 59.97c तां वधिष्यामि वैदेहीम् VI. 81.26c ,, वर्जयित्वा नरदेवपत्नीम् II. 34.61b , विचिन्तयतः कान्ताम् IV. I.53c विचेतुं प्रचक्रमे V. II.48d ,, विद्धि जनकात्मजाम् VI. 84.13d ,, विना त्वमिहागतः III. 59.21d ,, विनाऽथ विहङ्गोऽसौ IV. I.55a ,, विना मृगशावाक्षीम् IV. 30.IIC ,, विलोक्य विशालाक्षीम् V. 15.26c ,, वृक्षपर्णच्छदनां मनोज्ञाम् II. 56.34a , वृत्तिं वर्तसे कच्चित् II. I00.74c ,, वेपमानामुपलक्ष्य सीताम् III. 47.50a ,, वेलामत्यवर्तत II. 10.18d ,, वे धारयितुं राजन् I. 42.23c तां वै धारयितुं राजन् I. 42.24c ,, शय्यां तमसातीरे II. 46.14a ,, शरैर्दशमिः क्रुद्धः V. 44.IIC , शाखां शतयोजनाम् III. 35.21d ,, शीलां तु प्रचिक्षेप VI. 76.43a ,, शीघ्रमभिगच्छ त्वम् II. II7.16c ,, शुफ्लक्षौमसंवीताम् II. 20.19a ,, शुभां प्रवरद्वाराम् VI. 38.10c ,, शून्यशृङ्गाटकवेश्मरथ्याम् II. 71.456 ,, शून्ये प्रसभं सीताम् III. 42.8c ,, ,, रावणो हरेत् III. 44.18d ,, शोकनाशिनी दिव्याम् V.9.2ga तांश्चतुर्थेन भागेन VII. 86.16c तांश्च पृच्छसि संशयान् II. I06.3d ,, प्रतीक्षमाणोऽयम् IV.35.20a , वानरशार्दूलान् VI. 88.6a ,, विप्रद्रुतान्सर्वान् II. 96.50 विप्रदूतान्दृष्ट्वा II. 96.6a ,, स प्रतियुध्यन्वै I. 70.29a , सर्वान्वनौकसः VI. 9I.2d ,, सर्वास्तपोधनान् VII. 82.15b , सर्वान्हरिश्रेष्ठान् IV. 65.14a तांश्वास्य जवसंपन्चान् III. 5I.I5c . तनयाजाने VII. 6.20c तांश्चैव सर्वान्स हरीन् VI. 7I.41a | तां श्रुत्वा करुणां वाचम् II. I03.1a ,,, गीतिसंपदम् VII. 71.18d !,, ,, दिव्यसंकाशाम् VII. 57.1a ,, सत्यनामां दृढतोरणार्गलाम् I. 6.28a ,, स नंदनसंकाशाम् V. 15.3a ,, समाश्वासयामास VI. 33.5a ,, समीक्ष्य तदा द्वाःस्थः II. 78.8a , , पुरीं लङ्काम् V. 3.13a ,, ,, विशालाक्षीम् V. 15.40a ,, समुत्थापयामास VII. 25.40c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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