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________________ तं निकृतं शरं दृष्ट्वा VI. 71.68 निगृह्णीष्व पौलस्त्य VII. 20. 16c तं नित्यमनुरक्ताऽस्मि V. 24.90 निनादं निशम्याथ VI. 35.2a तन्निबोध तपोधन I 66.20b " 13 प्लवङ्गम IV. 34.11d तं निबोध लवङ्गम VI. 113.41d तन्निबोध महामते I. 71.2d तन्निबोध समाहितः VII. 58.6d तन्निबोधानुपूर्वशः VII. 5.38d तन्निमित्तमिदं वैरम् VI. 94.11a तन्निमित्ताभिरासीनो II. 64.5a तन्निमित्तेन मानार्हः V. 36.23a तन्नियोगे नियुक्तेन VI. 1.1oa तन्निवर्तय लङ्केशात् VII. 22.45a तं निवर्तयितुं यामि II. 85. roa निर्विषाशीविषसंनिकाशम् VI. 59.139a निशम्य गुहादेशम् II. 52.7a विनिश्चयम् II. 10.4d " در 11 " सनिस्त्रिंशम् VI. 92.44a " तनिशामय च श्रुत्वा VII. 53.3c तं निष्प्रभमिवादित्यम् IV. 18.2a ,, नीलजीमूतनिकाशकल्पम् III. 51.45a ,, नु नार्हामि संक्ष्टुम् II. 22.14C तन्नैर्ऋतानां बलमर्णवाभम् VI. 70.66b तन्नो देव भयार्तानाम् VII. 6.8a " "" मृत्युकृतं भयम् VII. 6. 4rd तन्ममाचक्ष्व पृच्छतः V. 33.12d सुव्रत VII. 11.35d तन्ममैकमनाः शृणु III. 31.28d श्रुत्वा IV. 11.3C तन्ममेवैष सत्कार : IV. 5. roa तन्मया चारुनेत्रायाः VI. 12.1gc तन्मयाप्सरसो राम VII. 40.18c तन्मया वानरं बलम् VI. 25.3d "" Jain Education International ૨૮૨ "" वार्यमाणस्तु III. 38.23d तन्मर्षयतु चोक्तम् VI. 16.25a तन्महद्वानरं बलम् IV. 41.1b तन्महनो भयं तस्मात् I. 15. Ira तन्महीधर संनिभम् V. 1. 197b तन्मह्यं रोचते संधि: VI. 35.10a तन्मा दहेद्वेणुमिवात्मपुष्पम् II. 38.6d तन्मानयन्तौ युधि राजपुत्रौ VI. 74.4 तन्माभिवद धर्मज्ञ III. 7.6c तन्मामिदमुपस्थितम् II. 39.4d तन्मामुत्सृज्य हि वने III. 6215c तन्मां रामकृतोद्योगम् V. 35.720 तन्मांसानि च भक्षयन् III. 39.5d तमां सुरवराः सर्वे I. 49.4a तन्मुच्यतां महाबाहो VII. 30.7 तन्मुहूर्तमिवात्यर्थम् V. 97.26c तन्मृगद्विजसंघुष्टम् V. 18.270 तन्मे क्षन्तुं त्वमर्हसि IV. 10.7b त्वं कर्तुमर्हसि II. 4. 15d क्षन्तुमर्हसि I. 46.23d वक्तुमर्हसि II. 118.25d " رو " دو " "" در " " 33 दहति गात्राणि VI. 5.7a निगदतस्तात VII. 20.6c ब्रूहि पितामह VII. 78. 13d मर्माणि कृन्तति VII. 53.4d तन्मेऽमृतरसोपमम् II. 30. 15d तन्मेरुशिखराकारैः VI. 67.125a तन्मे शीलमराक्षसम् VI. 87.19f ,, शृणु नरव्याघ्र III. 70.1gc وو निगदतः शृणु I. 51.16d निगदितं सर्वम् I. I0. e शंसितुमर्हसि V. 58.96b समुपजानीत II. 39.38c तन्वीमप्यनलंकृताम् V. 20.30b तप अतिष्ठताव्यम् I. 65.4b " 99 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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