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________________ ३८१ " ,, तैलधात विमलम् VI. 98.18a ,, तोरणविटङ्कस्थम् V. 44.6a ,, तोलयित्वा बाहुभ्याम् IV. II.47a. तन्त्रीगीतसमाकीर्णम् IV. 33.21c तन्त्रीलयवदत्यर्थम् I. 4.34a तन्त्रीलयव्यञ्जनयोगयुक्तम् VII. 94.31c तन्त्रीलयसमन्वितः I. 2.18b ,, 4.8d , तपन्तमिवादित्यम् II. 16.IIa ,, तमर्थमभिप्रेत्य II. 49.17c , तमाश्वास यावहे VI. 74.6d ,,तं विधिमकल्पयत् VII. 3.12b , तस्य बाहुं सहतालवृक्षम् VI. 67.158a ,, तु कृच्छ्रगतं दृष्ट्वा V. I3.23a ,,, गत्वा परं पारम् III. 35.37a ,,, तारा परिष्वज्य IV. 15.6a ", , , , 16.Ila ,,,, दुन्दुभिमुद्यम्य IV. II.45a ,,, दृष्ट्वा तथाभूतम् VII. 30.18a ,,,, ,, बलात्तन VII. 29.28a ,,,, ,, मणिश्रेष्ठम् V. 66.2a ,,,, देशं न पश्यामि VI. IOI.I4C ,,, देशमतिक्रम्य IV. 43.37a ,,,, नारायणः प्रभुः VII. 6.62d ,,,, निःश्वासपीडितम् VI. 9I. IId ,,,, निष्पतितं दृष्ट्वा III. 25-4a ,,,, नैवंविधः कश्चित् II. I05.34a ,,,, पर्वतमासाद्य II. 56.13a ,,, पूर्वोदितं वृद्धम् II. 14.44a ,,,, बोधयत क्षिप्रम् VI. 60.18a ,,, मन्दोदरी पुत्रम् V. 28.125c ,,, मां जीवलोकोऽयम् II. 12.82a मायाप्रतिच्छन्नम् VI. 46.ga मे नातरं द्रष्टुम् VI. I2I.18c राजन्दशग्रीवम् VII. 14.25a ,, ,, रामः समाज्ञाय II. I0I.Ia ,,, वज्रमिवोत्सृष्टम् II. I03.2a ,,,, वेदावेदा तेन VII. 36.3a ,,,, शोकपरियूनम् VI. 2.1a ,,, स्वस्थं महाभागम् III. 73.43c ,, ते निष्कसहस्रेण II. 32.10c ,,, भयपरीताङ्गाः IV. 31.20a , शासितुमर्हसि III. 19.12b VII. 72.20 , 93.15d तन्त्रीलयसमन्विताम् VII. 94.3b तन्त्रीलयसमायुक्तम् VII. 7I.15a तन्त्रीस्वराः कर्णसुखाः प्रवृत्ताः V. 5.9a तं त्विदानीमहं हत्वा III. 54.25a ,, ददर्श महातेजा: V. 18.29c ,, ,, महेष्वासः VI. 88.4a ,, ददर्शाग्रतो राम: III. 12.22a ,, दिव्यवस्त्राभरणम् III. 32.22c ,, दीनदीनया वाचा III. 67.14a ,, दीनमानसं दीनम् III. 57.12c ,, दीप्तमिव कालाग्निम् IV. 31.31a ,, , , VII. 69.20a ,, दृष्ट्वा कैकसी तत्र VII. 9.4ra ,, गिरिशृङ्गाभ III. 49.18a । ,, ,, , , 67.I0c ,, ,, चलसंकाशम् V. 37.41a ,,, जम्भमाणं ते IV.67.1a तं दृष्ट्वा तूर्णमाकाशात् IV. 61.14c ,, तेजसाविष्टम् III. 24.35a ,,, तो महाभागौ III. 14.2a ,,, त्वमिनिर्यान्तम् VI. 81.7a ,,, त्वरितं यान्तम् VI. 49.32a , दृष्ट्वाथ वरारोहा V. 58.66a ,, दृष्ट्वा नागराः सर्वे II. 36.20a , , निहतं भूमौ VI. 56.31a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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