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________________ १८४ कन्दर्परूपिणम् VI. 94.6d कन्दो मूर्तिमानासीत् I. 23.10a कन्दुवत्स समुत्थाय VI. 40.13c कं नरं न प्रहर्षयेत् II. 94.14d ,, नु सा देशमापना III. 64.4c कन्यका पितृगार वात् VII. 9.14b कन्यया च पितुर्गहे II. 29.13a ,, त्वेवमुक्तस्तु VII. 9.26a . कन्या खलु विपश्चिता IV. 23.8d ,, चास्य महाभागा I. II.3c ,, तस्यैव राघव I. 35.15d कन्याधनमनुत्तमम् I. 74.6b कन्यां तां सुमहाव्रताम् VII. I7.3b ,, दत्त्वा यथाविधि I. I0.32b ,, दुहितरं गृह्य VII. 9.2c कन्या: परमशोमनाः I. 32.25D व.न्यापितृत्वं दुःख हि VII. 9.10a ,, ,, VII. 12.1IC कन्या पितृवशा ह्यम् VII. ६o.gb ,, भत्रे हि भ्रातृभिः VII. 25.28b कन्याभिर्मन्त्रिभिस्तथा VI. 128.62b कन्या मन्दोदरी नाम VII. 12.1ga. कन्यां वचनमब्रवीत् VII. 80.5d ,, स्त्री वापि पश्यति VII. 24.2b कन्यारत्नं ददौ राम I. 20.6c कन्या लाक्षणिका विदुः VI, 48.13d कन्याशनमयावीत I. 32.18d ,. -मनुत्तमम् I. 32.11b ,, , I. 33.5d ,, -मभाषत I. 33. Id कन्यासहायं तं दृष्ट्वा VII. 12.4a कन्यालीयुनन्दन I. 35.1gb कन्यास्ताः प्रददौ हृष्टाः VII. 5.32a. कन्या हि द्वे कु.ले नित्यम् VII. 12.12a, कन्योवाच तपोधनम् VII. 2.20b कं वा देशमितो गता III. 61.3b कं सा परिहरेदन्यम् II. 18.22c ! कपयः कामरूपिण: IV. I. IOD ,, VI. 99.50b , VI. I27.24b ,, शीप्रचारिण: IV. 37.34b कपयो विहरिप्यन्ति IV.42.12a .. हरिब IV. 54.0b कपर्दी नीललोहितः VII. 6.gb कपाट तोरणवतीम् I. 5.10a कपाटान्यवघयन् V. I2.16b कपालपाणिः पृथिवीम् II. 75.40a कपालशिरसा सह II. 51.3Id कपिः कथयते हृष्टः IV. 4.311 ,, कृतमनोरथ: V. 5-4.1b ,, कृतार्थः परिदृष्टचेता: V. 10.25]) कपिगणमयमाददत्सुभीमम् VI. 65.57c कपित्थस्य सुगन्धिनः II. 91.72d कपित्वं च प्रदर्शितम् IV. 21.12d कपित्वमन वस्थितम् V. 55.15d कपित्वमनुवर्तनाम् IV. 42.24d कपित्वं हरियूथप V. 37.31d कपित्वे कागरूपिणी IV. 66.d कपिनाऽऽकृष्यमाणान V. I.78c कपिना कृष्यमाणानि V. I.ITI ,, पर्वतोत्तमः V. I. I0cb ,, ,, V. 50.42d कपिपत्न्या वचः श्रुत्वा IV. I. Ion कपिप्रवीरस्य तदाद्भुतोपमम् VI. 125161) ऋषिप्रवीरेण महर्षिचोदनात V. 35.88b कपिप्रवीरो वेगेन V. I. 18TAL कपिभि: कामरूपिभिः IV. 12.1() कपिमिश्च प्रसादितः V. 57.3b ,, शिलायुधैः VI. S.2d कपिभ्यामुयमानौ तौ VI. 4.41c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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