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________________ ततस्ताराक्षसान्सर्वान् VI. 90.25a ततस्तान्राक्षसोत्सृष्टान् VI. 7I.7a8 ततस्ता प्रस्थितः शालाम् V. 9.21c ,, रजनी व्युष्य II. 92.1a ततस्ताँलक्ष्य वित्रस्तान VII. I5.Ja ततस्तां शिंशपां सीता V. 24.18a ततस्तांस्त्रीन्ह ताज्ञात्वा V. 46.33a ततस्तान्हरिवृद्धांश्च IV. 64.14a ततस्तामिः समेताभिः V. 58.80a ततस्ताभ्यां कुमाराभ्याम् V. 27.16a , , 3549a ततस्तामापगां दिव्याम् IV. 4I.I4c ततस्तामुषितो रात्रिम् I. 73.7c ततस्तामेव चोत्कृष्य VII. 8.IIa ततस्ताराद्युतिस्तारः IV. 3930c ततस्तारा पतिं दृष्ट्वा IV. 25.39c ततस्तारा हरिश्रेष्ठ: IV. 33.31a ततस्तावश्मवर्षेण I. 26.20c ततस्ताः सहिताः सर्वाः V. 58.84a ततस्तास्तं समालिङ्गय I. I0.20a ततरितलोदनं भुक्त्वा II. 69. I0a ततस्तीक्ष्णक्षुधा वयम् IV. 59.9d ततस्तीक्ष्णाचिरव्यग्रः V. 53 27c ततस्तीरमुपागम्य VII. 47.3a ततस्तु कपिशार्दूला: VI. 89.20c ,, कम्पनं दृष्ट्वा VI. 76.4a , गिरिसंकाशम् V. 42 5a ,, चोदितास्तेन VI. 75.49al ,, जयशब्देन VII. 6.12a जलशेषेण II. 87.19a तद्भीमबलं महाहवे III. 26.38a , तद्वानरसैन्यमुग्रम् VI. 59.44a ,, तमसातीरम् II. 46.1a ,, तं पत्ररथं महीतले III. 51.46a ,, , राक्षससङ्गमर्दनम् III. 30.41a ततस्तु तं राघवमुग्रवेगम् VI. 21.33a ,, ,, वानरवीरमुख्यम् V. 54.45a , तस्मिन्विजने महाबलो II. 53.35a ,, तां पाण्डुरहर्म्यमालिनीम् VI. 123.54a ,, ,, पुरीं लङ्काम् V. 4.5a ,, ताः प्राश्य तमुत्तमस्त्रियः I. 16.31a ,, तारा व्यसनार्णवप्लुता IV. 22.31a ,, ताविन्द्रजितोऽस्त्रजालैः VI. 73.6ga ., ते तस्य वधेन भूरिणा VI. 67.173a , ,, राक्षसऋक्षवानराः VII. 40.31a , ,, राक्षसपुंगवास्त्रयः VII. 5.44a ,, काञ्चनचित्रकार्मुको III. 4.34a , तौ दाशरथी VI. 80.32c ,, रामवचःप्रचोदितौ I. 4.36a ,, ददृशुर्वीराः V. 46.19c , दुर्धरो वीरः V. 46.2 [a देवताः सर्वाः I. 37.25a , देवर्षिमहर्षिपन्नगाः VI. 67.172a द्रुह्यतां पापम् II. 75.24c द्वारमागम्य IV. II.26a धारोद्धतमेघकल्पम् VI. 67.142a निनदं घोरम् IV. 14:3a नील: प्रतिलब्धसंज्ञः VI. 70.30a नीलो बलवान् VI. 67.22a ,, , विजयी महाबलः VI. 58.59a , प्रघसा नाम V. 24.4IC , भयसंत्रस्तम् IV. 2.13a भरतः श्रीमान् II. II5.23a मारुतप्रख्यः IV. 67.39c रक्षः क्षतजावलिप्तम् VI. 67.153a रक्षोऽधिपतिर्महात्मा V. 48.ra ,, राघवो वाक्यम् IV. 6.23c ,, राजा तं सूतम् II. 14.56c ,, राजानमुदीक्ष्य दीनम् VI. 73.3a , रामस्य निशम्य वाक्यम् VI. 59.13a २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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