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________________ ततः सुग्रीवभवनम् IV. 31.21a ,, सुग्रीवमासीनम् IV. 33.63a ,, सुग्रीववचनात् I. I.70a. ,, सुग्रीवसचिवाः IV. 2.7a. " , 2.12a ,, सुग्रीवसहितः I. 1.79a ,, सुतीक्ष्णवचनम् III. II.53a ,, सुतुमुलं युद्धम् IV. 12.17a ,, सुदर्शनं नागम् VI. 69.20a ,, ,, नाम IV. 43.16c ,, सुदामा द्युतिमान् II. 7I.Ia ,, सुपर्णः काकुत्स्थौ VI. 50.38a ,, सुपर्णबहुलाम् IV. 5.18c ,, सुप्तप्रबुद्धां माम् V. 38.22c ,, सुप्रीतमनसौ IV. 5.16c ,, सुभीमोबहुमिर्निशाचरैः VI. 51.36a ,, सुभृशसंतप्तः II. 78.13a ,, सुमन्त्रः काकुत्स्थम् II. 40. I0a. ,, सुमन्त्रं शुतिमान् II. 3.22c ,, सुमन्त्रमाहूय I. I3.19c ,, सुमन्त्रमैक्ष्वाकः II. 36.1a ,, सुमन्त्रस्त्वरिम् I. 8.5a 9, 9, 12.6c ,, सुमन्त्रस्त्वागम्य VII. 60.3a ,, सुमन्त्रेण गुहेन चैव II. 99.41a ,, सुमन्त्रोपि रथाद्विमुच्य II. 45.33a ,, सुमाली माली च VII. 6.39a ,, सुरगणाः सर्वे I. 65.18c ,, सुरगणैः सार्धम् I. 42.15a ,, सुराणां तु वरैः VII. 36.21a ,, सुरैः संप्रहृष्टैः VII. 7.44a , सुवेषं मृगयागतं पतिम् III. 46.38a ,, सुषेणप्रमुखाः प्लवङ्गमाः IV. 42.57a , सुस्राव शोणितम् VI. 58.49d ,, सुहृदमापृच्छय I. II.23c | ततः सूक्ष्माम्बरधरः VII 109.4a ,, सूतो यथापूर्वम् II. 14.46a ,, सूर्यनिकाशेन III. 28.14a ,, सूर्योदयं यावत् II. 65.Ira ,, सूर्य समुत्सृज्य VII. 35.40a ,, सृजन्तं बाणोघान् VI. 58.34a ,, सेनापति: क्रुद्धः III. 25.6c " , पश्चात् II. 9I.40c ,, सोमाश्रमं गत्वा IV. 43.14a ,, सौमित्रिराश्वास्य III. 66.2a ,, संसक्तहस्तस्तु VI. 99.34a ,. संस्मारितो राम: VI. I08.3a ततस्तं घटमादाय II. 64.3a ततस्तच्छासनं श्रुत्वा VI. 127. I0c ततस्ततस्तस्य शरप्रवेगम् VI. 95.53c ततस्ततस्तुल्यविशेषनिर्मितम् V. 8.4d ततस्तत्कर्मसिद्धयर्थम् I. 57.14a. ततस्तत्परितो याता VI. 7I. I08a ततस्तत्प्रहतं बाणैः III. 28.18a. | ततस्तत्र गमिष्यसि III. 5.36d ,, प्रविष्टस्य II. 42.29a ,, महातेजाः IV. 65.8a ,, मुहूर्तेन II. 91.4la. ,, समासीनौ II. 53.33a ततस्तथेति प्रतिगृह्य तद्वचः VI. 32.44a ततस्तथेत्युवाचैनम् III. 42.9a ततस्तथेत्येवमुदारदर्शन: II. 90.24a ततस्तदद्भुतप्रख्यम् I. 16.24a ततस्तदमृतास्वादम् IV. 59.1a ततस्तदत्रं चिक्षेप VI. 7I.91a , विनिहत्य राघवः VI. 99.51a ततस्तदा बहुविधभावितात्मनः V.7.17a ,, वानरसैन्यमेवम् VI. 73.70a ततस्तदिक्ष्वाकुवरौ III. 7.3a ततस्तदिन्द्रक्षयसंनिभं पुरम् II. 6.28a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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