________________
૨૮૨
कथं राजा भविष्यति II. 58.33d
, , भविष्यसि III. 33.7d ,, ,, ,, III. 33.8d ,, , स्थितो धर्मे III. 50.6c ,, रामस्य धीमतः II. 13. IId ,, रामो न कुत्स्थति VII. 43.18d ,, ,, भविष्यति II. I2.98d ,, ,, महाबाहुः II. 47.5a ,, रोचयसे भीरु II. 12.22c ,, ,, वासम् II. 12.23c , लक्ष्मण धारये IV. I.I08b ,, लब्धवरश्च स: VII. I.35b
वक्ष्यसि रामस्य II. 12.62c ,, वक्ष्यामि शत्रुघ्नम् VI. 49.10a. ,, वक्ष्याम्यहं त्वम्बाम् VI. I0I.15c ,, वत्स्यन्ति निपुणाः II. 43.8c है, वयं निवत्स्यामः II. 66.21c ,, वा करवाण्यहम् II. 2.15d ,,, तत्र वर्तते V. 58.3d ,,, भवता प्राप्तम् VII. 76.35a ,, विद्रवसीति च VI. 44.4b ,, विस्मरसे कपिम् VI. 28.If कथंवीर्यः कथंरूपः III. 68.7a कथं वेगो भविष्यति VII. 35.27d ,, वैरं न यापयेत् II. 8.37d ,, वैश्रवणं देवम् III. 48.21a ,, व्याहरतो मां ते V. 22.19c , शक्यमुपेक्षितुम् IV. 18.24b ,, शक्यं परं प्राप्तुम् VI. 83.24c , शक्ष्यति जीवितुम् V.55.18d ,, शश्यसि संपातुम् V. 37.5IC ,, शक्ष्ये निरीक्षितुम् III. 62.13b ,, शत्रुकुलीनं माम् IV. 55.8c , शूर्पणखा वृद्धा VI. 94.6a , शेते महीतले II. 88.4d
कथं सदसि भोक्तारः I. 59.14a ,, स धर्मं जानीते IV. 55.4a ,, सपल्या वत्स्यामः II. 66.19c ,, स बलवान्पुत्रः VII. I.35c ,, ,, भोक्ष्यते रामः II. 24.3c ,, , राघवो वीरः III. 53.24C ,, ,, राजा स्त्रीभूत: VII. 88.3a ,, ,, सर्वगुणहीना VI. (94.8a ,, सागरमक्षोभ्यम् VI. 12.20c
VI. 19.28c .. सा मम मुश्रोणि V. 66.12a ,, ,, रमते वाला IV. 30.8c ,, सीतोपमोक्ष्यते II. 61.5d ,, स्यादिह संमत: VI. 121.22d ,, स्याद्विनिवासनम् II. 33. IIb ,, स्यान्मम वेदने II. 22.16b ,, स्यामो निरामयाः I. 45.16d , स्वपिति जागर्ति VI. 29.20a ,, स्वर्ग गमिष्यन्ति I. 59.15a कथंस्त्रिदन्या विधवेव नारी II. 21.61d कथं हि त्वविहीनोऽहम् II. 52.39a ,, ,, धेनु: स्वं वत्सम् II. 24.jal ,, ह्यसितपद्माक्षी IV. I.48c ,, ह्यहं प्रतज्ञाय II. I09.24a ,, ह्येतदसंभ्रान्तः II. 23.6c कथ्यन्ते धर्मसंयुक्ताः VII. 37.240
,, पुरुषर्षभ VII. 43.8d :: कथ्यमानं महोदर VI. 65.5d - कदन कपिसिंहानाम VI. 79.5c
,, तरसा कृत्वा VI. 96.5a ,, यस्य पुत्रेण VI. 30.2IC
,, सुमहच्चक्रुः VI. 55.32a कदम्बपुष्पाणि सकेसराणि IV. 28.42c कदम्बबकुलैस्तथा VII. 26.4b कदम्बशाखासु विलम्बमानाः IV. 28.29b
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org