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________________ २९५ चन्द्रसूर्यपथे शिवे V. I.168b चन्द्रसूर्याविव स्थितो V. 1.57d चन्द्रसूर्याविवाम्बरम् I. 48.5b , ,, 50.20d चन्द्रसूर्याविवाम्बरे IV. I6.25d चन्द्रसूर्याविवोदितो V. 39.41b , , 68.2.1b चन्द्रसूर्यांशुसंकाश: IV. 41.29a चन्द्रसूर्यग्रहेरिव IV. I00.8d चन्द्रसूयॊ मया दृष्टौ V. 27.15e , महाभागौ III. 32.16c , वसुंधराम् IV. 3.13d चन्द्रस्तेज इवात्मजम् II. I9.37d चन्द्रस्येव नभोंऽशुभिः I. 16.25d चन्द्रस्योदयनेन च VII. 26.12d चन्द्रहंस प्रकाशाभ्याम् II. 26.1Ic चन्द्रहासमिति श्रुतम् VII. 16 43d चन्द्रहीनमिवाकाशम् II. 47.18a. चन्द्रादित्याविवोष्णान्ते VI 89.29a चन्द्रादित्यो च संसेते VII. 45.8c , नभश्चैव II. II.Ita चन्द्रायति दिवाकरः VII. 31.28d चन्द्रार्कतरुणाभासम् II. 92 37a चन्द्रार्कसदृशं सुतम् II. 72.23b चन्द्रार्कसदृशाः केचित् I. 28.12c चन्द्राकों मम वासवः VII. 35.31b चन्द्रार्धचन्द्रवक्त्रांश्च VI. 99.47c चन्द्रांशुकिरणाभाश्च V. 9.48a चन्द्रांशुचयगोरेण VI. I28.83c चन्द्रांशुकिकचप्रख्यम् II. 15.9c चन्द्रांशुशिशिराम्बुमत् V. 57.4b चन्द्रांशुसदृशी प्रभा II. 60.16d चन्द्रेणाकान्तमस्तकः VII. 40.26d चन्द्रेणोरच्छता तदा IV. 9.Iod चन्द्रे दृष्टिसमागम: VI. 5.6d चन्द्रे लक्ष्मीः प्रभा सूर्य III. 65.5a ,, सौम्यत्वमीदृशम् VII. 37.7b चन्द्रोदये समुद्भूतम् VI. 4.IIIa चन्द्रोऽपि बभ्राज तथाम्बरस्थ: V. 5.4d चन्द्रोऽपि साचिव्य मिवास्य कुर्वन् V. 2.54a चन्द्रोऽहं रविरप्यहम् VII. 6.6d चपलं चपलेन्द्रियम् V. 21.8d चपलश्चपलैः सार्धम् IV. 18.16a चपलस्य तु कृत्येषु VI. 12.33a चपलस्येह कृत्यानि VI. 63.19a चपला ह्यविनीताश्च , 57.9a चपलो भीमविक्रमः , 26.23d चमराः सृमराश्चैव II. 29.3c ,, समरास्तथा III. 43.IId चमू तिष्ठति शोभयन् VI. 26.40b चभूपतिमताडयत् VI. 59.87d चमृमिव महाहवे II. II4.6d चमू प्रकर्षन्महतीम् V. 36.34c " , , 37.20c ,, विधानः परिबर्हशोभिनीम् II. 83.26b चम्पकागुरु'नागम् VII. 42.3a चम्पकानागवृक्षांश्च IV. 50.26a चम्पकाशोकघुनाग VII. 26.5a चम्पकाशोकबकुल VI. 39.3a चम्पकाशोकशोमितैः II. I0.13d चम्पकांश्च सुपुष्पितान् V. 14.3b चम्पकांस्तिलकांश्चूतान् VI. 4.72a चम्पकास्तिलकाश्चैव IV. I.78c चम्पकोद्दालकास्तथा V. 15.9d चरणाधोमुखी स्थिता VII. 9.16d चरणाधोमुखीं स्थिताम् VII. 26.30b चरणान्नूपुरं भ्रष्टम् III. 52.29a चरणाभ्यां च पर्वतम् V. I.IId ,, ,, मर्दिता V. 14.1gb , नरेन्द्रस्य VI. I27:53c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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