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________________ हेमराजतवर्णाभ्याम् III. 43. Ic वज्रविभूषितम् III. 12.32b हेमवज्रविभूषितैः III. 26.2gb हेमवर्णाम्बरावृतैः I. 54.22d हेमवर्णाः सुनासोरू: VI. 125.45a हेमसंछादिताम्बरम् VI. 40.5b हेमसूत्राणि चान्यासाम् V. 9.490 हेमसोपानयुक्तं च V. 9.15c हेमा नामाप्सरास्तत्र VII. 12.60 हेमाभरणभूषितान् IV. 50.27b हेमाभाः प्रियदर्शनाः IV. 40.27d माया वानरोत्तम IV. 51.17b मायै वनमुत्तमम् IV. 51.15d हैतुकांश्च बहुश्रुतान् VII. 94.8b हैममासनभाजनम् V. 1.23b हैमया हरियूथप: IV. 17.6b हेमराज कांस्यानाम् IV. 50.34c हैमराजतपर्यङ्कैः IV. 33.20a हैमराजतभौमानि IV. 50.31c मराज भौमेषु II. S8.sc हैमैराभरणैश्चित्रैः V. 49.3c हैमैर्गृद्शतैरृताम् VII. 5.29b हैमविभूषण: VI. 73.15b हैरण्यकक्षग्रैवेयान् I. 53.170 हैरण्यं संप्रयच्छामि VII. 18.32c हैरण्यानां रथानां च I. 53.18c हैहयस्य नृपस्य वै VII. 32.26d हैहयाधिपतिर्बली VII. 31.9b हैहयाधिपयोधानाम् VII. 32.35a इयानां तथार्जुनम् VII. 33.13d हैहयास्तालजङ्घाश्च I. 7028c " II. I0.16c होताध्वर्युस्तथोद्गाता I. 14.35a होतारो ददुरावाह्य I. 14.9c होमकाले तु संप्राप्ते III. 10.IIC Jain Education International १३४८ होमशोणिततर्पितः VI. 82.26d होमशोणितभुक्तदा VI. 82.26b हौत्रं कर्तुमनिन्दितः VII. 55.14b कम्पनं त्वेनमवेहि राजन् VI. 59.14b ग्रग्निः प्रभोः प्रभुः II. 44.15b ह्यजय्यः प्रभुरव्ययः VII. 8.26d हाति परिश्रुता VII. 35.20b हातर्कितमचिन्तितम् VII. 21.23b अतिरिक्को विशांपते II. 2. 28d ह्यतिष्ठगहने वने IV. 12. 14d ह्यत्यर्थशुभदर्शना IV. 1.7b ह्यद्भुतं सुमहद्रजः VI. 93.10b त्रैलोक्यचारिणम् III. 64.59d धर्मं धर्मसंहितम् II. 109.20b वोपरि चाम्बरे V. 51.13d ह्यन्तरिक्षगताः सुराः VII. 97.22b ह्यन्तःपुरचराः स्त्रियः VII. rog.rob पवादं सुदारुणम् VII. 47.11b ह्यब्रवीद्भक्तवत्सल: VII. 51.16d हामीता भयदर्शिनी II. 13.2b ह्यभ्याहृता वं समुपेत्य भीरुः III. 63.7b मृतस्य विमन्थनम् IV. 58. 13d हायोध्यां यान्तु सीतया VI. 123.28b हारोगं सह बान्धवैः II. 50.42b ह्यवश्यं पार्थिवो हितम् IV. 32. 18b हाराद्वास्यो दशानन: VII. 32.11b शोकवनिकां गता VI. 126.32b ह्यश्वमेधो वर्तत VII. 92.9b ह्यस्माकं चार्यकोऽभवत् VII. 25.23b ह्यस्मिन्काले विशेषतः IV. 25.17d ह्यस्मिन्नाश्रममण्डले IV. 46.22b हन्यहनि राघवम् VII. 99.11d ह्याकाशस्थस्य दन्तिनः V. 27.14d ह्याचचक्षेऽथ मन्त्रिणाम् VI. 128.39d ह्यार्यबुद्धेस्तपस्विनः II. 108.2 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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