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________________ २८१ गृधैरनुगताश्चास्य VI. I06.27a गृध्रा द्वौ दृष्टपूने मे IV. 60.10a गृधं हतं तदा दृष्ट्वा VI. I26.33c , हत्वा जटायुषम् I. I.53b गृहकर्ता भवानेव VII. 5.19c गृहगाढामविच्छिद्राम् I. 5.I7a गृहं कुरु महामते VII. 5.20b , गच्छन्तु वानराः IV. 55.IId ,, च यदिदं मम II. 32.25b ,, , वैनतेयस्य IV. 40.40a ,, चेदं हिरण्मयम् IV. 5I.I6b ,, जगामाथ ततश्च वीर्यवान् VI. 92.64c ,, देवगृहोपमम् III. 55.6d गृहद्वारेषु संघशः II. 6.16b गृहं नः क्रियतां महत् VII. 5.21b गृहमुख्यानि सर्वशः IV. 50.32b गृहमुख्यैः सुरुचिरैः VII. I0I.I4c गृहमेधैः पुरी रम्या V. 4.6e गृहं प्रविष्टे सुग्रीवे IV. 30.1a ,, भूतपतेरिव V. 6.39f ,, महारत्नविभूषितं च V. 48.57d गृहाय्यशृङ्गाग्रतले विचित्रे V. 54.48a गृहाण च वर सौम्य VII. 76.8a ,, त्वं मयोद्यताम् VI. I2I.Lad ,, परमोदारान् I. 27.21c ,, पाणिं माण्डव्या: I. 73.32a ,, वत्स सलिलम् I. 22.12c ,, विष भद्रं ते I. I0.19c ,, सुस्मिते वाक्यम् V. 23 19c , हरिसत्तम V. I. 122b गृहाणां बलिकर्माणि VI. 35.29a , सागरः पुन: VI. 75.53b गृहाणि नानावसुराजितानि V. 7.3a ,, प्रचकाशिरे VI. 75.22d , प्रतिभाष्य च VI. 35.28d गृहाणेदं विषं प्रभो I. 45.24d गृहाण्येव प्रवेशिताः VII. 23.48d गृहातिगृहकानपि V. 12.15b गृहाद्गृहं राक्षसानाम् V. 6.16a , ,, 54.7a. गृहाद्ययौ सिद्ध इवेन्द्रलोकात् II. 70.30d गृहाय प्रतिनेष्यति II. 97.22d गृहांश्च गृहदातारः VII. 21.19c गृहीतचापोद्यतदण्डचण्ड: IV. 30.56c गृहीतचापौ तु नराधिपात्मजी III. 13.25a गृहीतं चापि वानरम् VI. 67.72d गृहीतधनुषा त्वया III. 9.24d गृहीतधनुषावावाम् II. 96.20a गृहीतधनुषो यस्ते VI. 2.17c गृहीतधनुषं रामम् III. 39.15c गृहीतप्रासमायान्तम् VI. 69.80c गृहीतमूर्धजां दृष्ट्वा VI. 81.16a गृहीतं भ्रातरं ,, VI. 76.30a गृहीतश्च वरस्त्वया VI. 35.22d गृहीतश्चैव पृष्टश्च II. 100.57a गृहीतसमिधं तत्र I. 48.25a गृहीता इव बाहवः VI. I06.25d , तेन पृष्टास्मि VII. 26.48a ,, बलवत्कुब्जा II, 78.12c गृहीतां लाडितां स्तम्भे V. 19.18a गृहीतास्त्रोऽस्मि भगवन् I. 28.2a गृहीते वरनारीभ्याम् III. 5.10a गृहीतैीमदर्शनैः III. 22.1gd गृहीतो दैवतपतिः VI. 7.22c गृहीतोऽयं यदि भवत् VI. 67.76c गृहीतो वा न विज्ञात: VI. 29.roa: गृहीतोऽस्म्यपि चारब्धः VI. 24.28c गृहीतौ धर्मकुशलैः IV. 18.30e गृहीत्वा करुणं कुब्जाम् II. 78.8c , क्षीरमेकाहि I. 37.29a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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