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________________ १२६३ साम्य गाधे भये मग्ना II. 7.21a साहमद्यैव दिष्टान्तम् II. 66.12a साहमेवं गता श्रेष्ठ। II. 39.31a साहमेवं विधे काले V. 26.44a सा हर्षोत्फुल्लनयनाम् II. 7.7a साहसं साहसप्रिय VI. 4I.3d साहस्रान्कुपितः क्षणात् III. 26.22d साऽहं कथं करिष्यामि V. 26.33c साहं गौरिव सिंहेन II. 43.18a ,, तपश्चरिष्यामि I. 46.3a ,, तस्याग्रतस्तूर्णम् V. 33.27a साऽहं त्यक्ता प्रियेणैव V. 26.47a साहं त्वदर्थे संप्राप्ता II. 8.26a , त्वया गमिष्यामि II. 27.15a ,, बन्धुजनहींना VI. III.58c साहाय्यं कर्तुमर्हसि I. 29.17d " , III. 40.16d , ,, IV. 39.5d भाहाय्यं मे करिष्यथ I. 28.14d , लघुविक्रम III. 7I.33d , वानरेन्द्रस्य V. I.86a , विषये सति V. 58.27b साहाय्यायोपकल्पते VI. 63.27d साहाय्ये त्वां वृणोति च VII. 25.48b सा हि गौतमवाक्येन I. 49.16a ,,, चन्दनवर्णाभा III. 60.32a ,, ,, जन्म च वाल्यं च VI. 92.54a ,,, तत्र कृतामित्रम् VI. 33.3a ,,, दिष्टानवद्याङ्गि II. 30.40a ,,, देवी महाराजम् II. 53.7a ,, ,, नूनं मम भ्रात्रा II. II4.24c ,, ,, नोऽस्ति ध्रुवा गतिः II. 78.15d , हिरण्यं च गाश्चैव II. 3.47c ,, हि राज्य मिदं प्राप्य II. 31.13a ,,, वाक्येन कुब्जायाः II. 9.37c सा हि शोकसमाविष्टा VI. II4.3a , हेमवर्णा नीलाङ्गम् III. 52.23a , हृता मधुना राजन् VII. 25.25a ,,, राक्षसेन्द्रेण III. 68.9a , हृष्टा तस्य तद्वाक्यम् II. 19.12a साह्यं कृतं ते सुमहत् V. I.133a. , विषयवासिनि V. I.II7d साह्यार्थं त्रिदिवौकसाम् VI. 27.21b सांकाइयादागतः पुरात् I. 7I.16b सांकाश्यां ते समागम्य I. 70.7a , पुण्यसंकाशाम् I. 70.3c सांकाश्ये भ्रातरं शूरम् I. 7I.Igc साङ्गदैर्बाहुभिस्तथा III. 25.43b सांनिध्यात्तव वानर V. 39.21b ___ , , , 56.4b " , , 68.4b सांप्रतं कालमस्माकम् IV. 65.13a ,, , 66.34c , तु समृद्धार्थम् VI. 124.8a ,, मयि वर्तसे VII. 49.Iod ,, विश्रवात्मज VII. II.25b , संप्रहर्षणम् VI. 19.4b सांवर्तकमिवानलम् III. 65.Id सिक्तराजपथारम्याम् I. 77.7a सिक्तराजपथां कृत्स्नाम् II. 7.2a सिक्तसंमार्जितपथाम् II. 14.27a सिक्तसंमृष्टरथ्या हि II. 5.18a सिक्तं काञ्चनबिन्दुभिः V. 44.9d ,, ह्यपगतं रज: VI. 55.24d सिक्तां चन्दनतोयैश्च II. 7.3c सिक्तो रुधिरबिन्दुभिः III. 65.7d सिञ्चतामपि गर्जताम् VI. 16.12b सिञ्चन्ती वाक्य वारिणा V. 66.8d सिञ्चन्तु पृथिवीं कृत्स्नाम् VI. 127.7c सितमेधनिभं चापि II. 91.33a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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