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________________ १२२५ स विदो दशभिर्बाणैः VI. 100.11a ,, न्यस्य वैदेहीम् III. 3.13a ,, ,, बहुभिर्बाणैः III. 4.8a ,, विद्वा गन्धमादनम् VI. 73.43b ,, विद्युजिह्वेन सहैव तच्छिरः VI. 31.45a सविद्युत्स्तनयित्नुमान् VI. 77.6d सविद्युदिव तोयदः V. 54.6b " , VI. 61.5d , ,, ,, 123.38d सविद्युदुल्कः सज्वाल: VI. 69.23c स विद्युन्मालिना सार्धम् VI. 43.14C ,, विधूय चितामाशु III. 72.4a ,, विध्यमानः सहसा VI. 76.68c ,, विनद्य महानादम् III. 3.14a " , , VI. 56.16c , विनिर्भय॑ वानरः IV. 10.IId ,, विन्ध्यस्य महागिरेः IV. 56.3b सविभीषणसुग्रीवाः VI. 23.15a सविमर्श विचारयन् VI. II4.18b सविमर्शो विभीषणः VI. II4.31b स विमुक्तो महावाणः III. 30.26a , विरूपाक्षयूपाक्षौ V. 46.2a. , विवेश स धर्मात्मा VII. 45.240 ,, विव्याधाशनिप्रभः VI. 43.33d सविशङ्का तथा कुरु II. 22.6d सविशेषममर्षितम् II. 22.1b स विश्रम्य निशाचरः VII. I4.23b , विषाणं वसादिग्धम् III. 2.7c सविषाणामिवान्नानाम् III. 29.9c सविषानिव पन्नगान् VI. 24.43b स विसृज्य ततो राम: VII. 42.Ia ,, विसृष्टो बलवता IV. 12.3a. ,, महावेगः VI. I08.18a ,, विस्फारितसर्वाङ्गः VI. 52.36c , विस्फार्य तदा चापम् VI. 7I.5a | सविस्फुलिङ्गज्वलनप्रकाशम् VI. 59.39b सविस्फुलिङ्गं सज्वालम् VI. 67.23e " , , 70.22a सनिस्फुलिङ्गा ज्वलिता VI. I00.2Ic सविस्फुलिङ्गोज्ज्वलपावकानि VI. 73.55c सविस्फूर्जितनिःस्वनाः VI. I0.21d सविस्मयो नगमिवचारुकन्दरम् V.7.15b सविस्मितमिदं रामः VI. 61.4c स विलब्धोऽब्रवीद्वाक्यम् III. 31.9c ,, विहाय इमं लोकम् VII, 6I.Iga ,, विहायोत्तरीयाणि V. 33.26a ,, विह्वलस्नु तेजस्वी VI. 70.15c ,, विह्वलं तदा लक्ष्य VII. 32.63a. ,, विह्वलितसर्वाङ्गः III. 61.28a. ,, वीक्षमाणस्तत्रस्थः V. 15.1a. , वीरशयने शिश्ये VI. 45.24a ,, वीरशोभामभजन्महाकपिः VI. 56.38a ,, वीरः कनकाङ्गद: VI. 76.13b ,, ,, पुरुषोत्तम: IV. 30.72d , , , , 31.6d ,, वीरो लक्ष्मणाग्रज: V. 26.36b ,, वनसंकाशम् VI. 98.20a. ,, वीर्यमस्त्रस्य कपिर्विचार्य V. 48.42a ,, वीर्यवान्कथं सीताम् V. 40.6a ,, वीर्योत्सेकदुष्टात्मा IV. II.8a ,, वृक्षखण्डांस्तरसा जहार VI. 74.46a ,, वृक्षवनगुल्यान्यम् V. I0.9c ,, वृक्षशिखरोदनः V. 56.49c ,, वृक्षं कृत्तमालोक्य VI. 70.7c ,, ,, तं महावाहुम् V. 62.25a ,, वृक्षाग्रे यथा सुप्तः IV. 38.22a ,, वृक्षेण इतस्तेन VI. 56.30a ,, वृत्र इव वज्रेण III. 30.28a ,, वृद्धबालदासीकाः VII. I09.10C ,, वृद्धस्तरूणीं भार्याम् II. I0.23c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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