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________________ १२०१ समुद्रः सरितां पतिः II. 23.28d ,, , . , 34.46d ., , ,, VI. 22.40d , 102.4cd ,, ,, ,, VII. 9.32d समुद्राज्जलमानय VI. 19.24d समुद्राजलमानयत् VI. I28.54d समुद्राणामभूत्स्वनः VI. 44.I8d समुद्रात्पश्चिमात्पूर्वम् IV. 11.4a समुद्राद्वानरोत्तमाः VI. II2.14b समुद्राश्च परार्धाश्च IV. 38.31c समुद्राश्वापि संक्षुब्धाः VII. 16.31a समुद्रे जनकात्मजा V. 13.Iod समुद्रेण च तेनैव VI. 28 40a समुद्रे पतिताः केचित् VI. 90.79c समुद्रेभ्यश्च सर्वशः II. 15.7b समुद्रे शतयोजने III. 38.rgd ,, , IV. 41.28b समुद्रेष्ववतिष्ठतः II. 91.75d समुद्रे सेतुबन्धनम् VII. 43.14b ,, हरिपुङ्गवः V. 54.49d समुद्रोऽपि न कम्पते I. 15.Iod समुद्रो वरुणालयः IV. 67.13d समुन्नत जटाभारम् VI. 125.3IC समुन्नत मपोथ यत् VI. 58.2rd समुन्मूलय शोकं त्वम् IV. 27 37a समुपस्थापयामासुः IV. 38.10a समुपस्थितयौवनौ I. 48.3d ,, ,, 50.18d समुपस्पृश्य वीर्यवान् V. 57.13d समुपासन्त संहिताः II. 87.I9d समुपास्त तपोधनाम् II. 118.22d समुपेता महर्षयः II. 112.1d समुपेतास्मि भावेन III. I7.24c समुपेताः सुनिष्ठिताः I. I3.Iod समुपेत्य सुखी भव VII. 73.12d स मुमोच ततो वाणान् VI. 107.22c ,, , महाबाणम् VII. 69.34a ,, मुष्टिनिर्भिन्ननिमग्नवक्षाः VI. 69.94a ,, मुष्टिनिष्पिष्टविभिन्नमूर्धा VI. 70.25a ,, मुष्टिमुद्यम्य महाप्रभावः VI. 69.91c ,, मुष्टिं पातयामास VI. 76.89c ,,, विन्यपातयत् VI. 98.21d ,, मुहूर्तमिव ध्यात्वा V. 13.56b " , , , I4.ra " , , , 16.2a , , VI. 100.38a ,, मुहूर्तमिवासंज्ञः II. 39.3a , VII. 7I.I7c ,, मुहूर्त गते तस्मिन् I. 2.3a ,, ,, चचाल ह VI. 76.26d ,. , समावस्य II. 87.12a ,, मुहूर्तादुपश्रुत्य VII. 81.ra ,, मूञ्छितो भूमितले पपात VI. 70.6ra , मूर्ना न्यपतभूमौ IV. 12.6a समूलपुष्परचितैः V. 15.70 समूलांश्च विमूलांश्च VI. 22.54a समृगव्यालपादपम् V. 46.37b समृणाल इव ह्रदः IV. 15.4d समृद्धकामो भरतो भविष्यति II. 9.63d समृद्धधनधान्यानि VII. 39.70 | समृद्धमन्तः पुरमाविवेश ह II. 15.47d समृद्धवनशोभित: I. 31.23d समृद्धविपणापणाम् II. 14.27d समृद्धं स्त्रीसहस्रेण V. 23.13a समृद्धः परया लक्षम्या VII. 65.19c समृद्धानि विनश्यन्ति V. 21.IIC समृद्धा मनुना मही II. II0.7b समृद्धायामयोध्यायाम् II. 108.8a समृद्धार्थस्य नष्टार्थः II. 8.35c १२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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