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________________ सङ्ग्रामे मह यूहे VI. I0. I Ra ,, सोऽभ्य वर्तत VII. 28.d सङ्ग्रामेऽस्मिन्सुदारुणे VI. 60.30D सङ्घशस्तन हृष्टवत V. 2.0d सङ्घशः शकुनास्त्विद II. I.Hb स च काम पराधी : V. 1S.Iya ,, चकार तदात्मानम VI. 7:52a सचक्रकावर मुखम् VI. 52.2(C सचक्रवरं साश्वम् VI,5+23c स चक्रवाकानि सर्शवलानि IV. 30.55a सचक्षुपः प्रविचरतो महात्मन: V.7.170 स चचाल भृशाहतः VI.76.2d ,,, वरासनात् IV. 33.28d ,, च वालाचलश्चाशु V. I.12a ,, च ज्येष्ट्रो नर श्रेष्ठः 1,58 20a ,, ,, तं शतधाछिनत् VII. Sd ,, ,, ता दीयमानाः 1 32.25a ,... तान नदीद्वायन IV.yo.za ,, तानसत्रयों ज्ञा-या I... a. ,, नानिः परिवार: V. 4 ,, ,, नां कालीगेन 1. 33.11a ,, ,, ,, समदचिताम III. 44.30 ,, चतुर्मामुपायानाम IV. 54 5a ,, चतुर्दशभियाशि: VI 5626a ,, चतुभिमहाभागः !. 18.336 ., च तेनाभिरक्षितः [.. तेपे महत्तयः !...5.50 .. ते वैदिनच्या स्थान VI. 125.14c ,, देवरितिदि . 35.Soc देशो महाप्राज्ञ iv.40.IIC. ..., न प्रतिजग्राह VI. 17.15a नित्यं प्रशान्तात्मा II, I.ioa सचन्द्र कुमुदं रभ्या .57.. . सचन्द्र तारागणमण्डिते यथा V. 80.22a सचन्द्रसमहाग्रहम् VI. 77.8d स च पत्रलघुर्भूत्वा VI. 20.20a ,, ,, पम्पामतिक्रम्य III. 54.5c ,,, पावकसंकाशः III. 5.40a ,, ,, प्रमाणं धर्मात्मा II. I0I.25a ,, ,, भग्नः प्रदुद्रुवे VII. 14.23d ,, ,, भूमिधरः श्रीमान् V.56.49a ,, ,, मायामयो दिव्यः III. 49.10a ,, मां प्रत्यभाषत VII. 4I.4d ,,, मेघाचल प्रख्यः VI. 17.4a ,, ,, मे प्रेषयामास I. 7IIMa ,, च मे रावणो राजा IV. 59.19c ,, ,, ,, विहितो मृत्युः V. 26.31a ,, ,, राजा दशाननः VII. 21.30b ,, ,, ,, नरश्रेष्ठ I. 62.27a ,,,, ,, न संशयः VII. 74.2gd ,, ,, रोषेण संवीतः II. 78.16a सचर्म काटिनं च यत् II. 40 I5d स च वाग्भिः प्रशस्ताभिः V. 4I.la ,, ,, विध्वंसितो मया VII. 45.5d ,,,, शत्रुरसंशयम् III. 31.44b ,, ,, शैलवरे रम्ये II. IIO.I7c .,, श्रीमानचिन्त्यात्मा II. 40.31a ,,, सर्वगुणोपेतः I. I.IMa ,,,, सर्वान्समानीय I. I.7la ,, ,, सर्विचेतव्यः IV. 43.29a ,, ,, सिंहासने प्रभुः I. 4.30d ,,,, सेतुर्यथा बद्धः VI. 25.6a ,,,, हन्ता विराधस्य VI. 24.30a , चाङ्गविषयः श्रीमान् I. 23.14C . ,, चात्र तप आतिष्ठत् I. 48.16a ,, चाद्यासादितस्त्वया VII. 34.36d ., चापबाणासिरथाश्वशुल: VI. 73 26c , चापमादाय भुजंगकल्पम् VI. 67.134a ,, चापमुद्यम्य महत् III. 24.18a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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