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________________ आत्मानं सर्वथा रक्ष VI. 16.250 आदाय मेध्यं त्वरितं बुभुक्षितौ II. 52.102c आत्मानं सुरसत्तमाः VII. 85.6b आदाय रामः सहसा जगाम VI. 59.45b आत्मानं स्त्रीकृतं चैव VII. 87.16a आदाय विपुलं शूलम् VI. 65.20c आत्मानं स्वजनं राष्ट्रम् III. 87.7c आदाय शत्रुघ्नमपेतशत्रुः II. 70.30c आत्मानं स्वजनं हन्ति IV. 34.9c आदाय शिबिकां तारः IV. 25.21a आत्मानुमानात्पश्यामि IV. 10.34a आदाय सहसा ययुः VI. 60.23d आत्मानुरूपं वचनम् IV. 58.IIC आदाय सुकृतं तस्य VI. 18.30c आत्मापहरणोपमम् V. 53.24d आदायागच्छ संभ्रमात् IV. 25.17b आस्मा रक्ष्यः प्रयत्नेन V. 46.17a आदायात्मविभूषणम् III. 44.2b आत्मा वेद शुमाशुभम् IV. 18.15d आदावेव तु सुग्रीवम् IV. 22.1c आत्मा सुखे नियोक्तव्यः II. I05.3Ic आदावेवास्य कर्मणः VI. 12.2gd आत्मा हि दाराः सर्वेषाम् II. 37.24a आदास्यन्तेऽद्य सौमित्रे VI. 88.22c आत्मेयमस्येति हि मां जहि त्वम् IV. 24.37c | आदास्ये जीवितान्तगैः III. 19.8b आत्मेयमिति रामस्य II. 37.240 | आदिकर्ता स्वयंप्रभुः VI. II7.7d आदत्ते युधि रावण: I. 20.23b , , , , I8d आदत्तं यैस्तु सङ्ग्रामे VI. 5I.I7c आदिकाव्यमिदं चार्षम् VI. I28.105c आदत्ते राक्षसाधमः III. 70.4b आदिकाव्यमिदं राम VII. 98.18a आददू रक्षसां प्राणान् III. 25.I9a आदितः शृणु राघव III. 14.6d आददे निशितं बाणम् VI. 71.70c आदितस्तद्यथा वृत्तम् I. I.6oa , , , , 90.58a आदित्य इव तेजसा VI. 55.9b आददे निशितं शूलम् VI. 65.18a आदित्य इव तेजस्वी V. 34.28a आददे परिघं धीरः VI. 77.2c आदित्य इव दुष्प्रेक्ष्यः VI. 59.27a आददे संदधे चापि VI. 71.76c आदित्यकोटीसदृशः सुतेजा V. 54.33a आदबुभुक्षितो मांसम् VI. 60.63a आदित्यचन्द्रौ ग्रहणम् III. 66.10c आदर्शतलनिर्मलाम् VII. 75.12b आदित्य तरुणोपमम् V. 9.18d आदर्शतलसंकाशा IV. 46.13a. आदित्यः पतितो भूमौ VI. 109.7a आदर्शतलसंस्थितम् II. 3.38b आदित्यपथमाश्रित्य VI. 74.50a आदानेऽरिबलस्य च VI. I8.12b आदित्यपदमास्थितौ IV. 61.7b आदाय गच्छ शत्रुघ्न VII. 64.4c आदित्यभवने चैव IV. 37.4a आदाय तानि रत्नानि VII. 39. IIC आदित्य भो लोककृताकृतज्ञ III. 63.16a आदाय निशितं बाणम् VI. 7I.50c आदित्यमण्डले नीलम् VI. 4I.I8c आदाय पतगानिव VI. 41.86b आदित्यमभिवाश्यन्ति VI. 41.16a आदाय परिगृह्य च VI. 57:7b आदित्यमाहरिष्यामि VI. 28.13a आदाय परिघं घोरम् VI. 70.3c आदित्यमिव कालेन IV. 17.10a आदाय मनुजर्षभ II. 55.4b आदित्यमिव रश्मिभिः II. 34.8d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002794
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1961
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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