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अमृजां राघवप्रियाम् VI. 81.Iob अमृतं तदिहानये IV. 67.28d अमृतप्राशनानिव I. 17.4d अमृतप्राशिनावुभौ VI. 28.7b अमृतं प्रार्थयानस्य II. 25.33c अमृतं यत्र चोत्पन्नम् VII. 23.23c अमृतं यत्र मथितम् VI. 50.31c अमृतं विषसंपृक्तम् V. 37.2a अमृतस्वादुकल्पानि IV. 37.29c अमृतं सोऽहरत्तूर्णम् I. 45.42c अमृतानयनार्थं वै III. 35.34c अमृतोत्पादने दैत्यान् II. 25.34a अमृतोत्पादने नद्धः V. 22.26c
,, ,, VI. 65.29c अमृतोपमतोयामि: V. 14.25c अमृत्यवस्तदा सर्वे VII. 74.Ila अमृष्यमाणः पुनरुग्रतेजाः II. I09.30a अमृष्यमाणश्च समुत्पपात VI. 71.46c अमृष्यमाणस्तं घोषम् VI. 67.14Ic
, , 70.44a अमृष्यमाणस्तत्कर्म VI. 58.24a अमृध्यमाणाः परहर्षमुग्र- VI. 69.44c अमृष्यमाणा रक्षांसि VI. 69.43c अमृष्यमाणाश्चत्वारः VI. 89.48c अमृष्यमाणा सा सीता I. I.82c अमृष्यमाणास्तद्धोषम् VI. 24.4c अमृष्यमाणोऽग्निसमानचक्षुः VI. 74.6rc अमोघक्रोधहर्षश्च II. I.23c अमोघः क्रियतां राम VI. 22.3IC अमोघदर्शने देवी VII. 87.23a अमोघं ते बलं ब्रह्मन् I. 56.20c अमोघं ते बलं श्रेष्ट I. 56.2IC अमोघं दर्शनं राम VI. II7.30a
, , ,, I20.2a अमोघं दर्शनं हि नः VII. 70.3d
| अमोघं देव वीर्य ते VI. II7.29c
अमोघं बत मे क्षान्तम् II. 4.4ra अमोघं युधि वीर्यवान् VI. I08.4a अमोघशापैः शापस्तु VII. 35.16a अमोघस्तव संस्तवः VI. II7.30b अमोघः सूर्यसंकाशः III. 12.33a अमोघां तस्य शक्तिं च VII. 12.21c
अमोघां शत्रुघातिनाम् VI. I00.3od | अमोघास्ते भविष्यन्ति VI. II7.30c अमोघाः सूर्यसंकाशाः IV. 5.26c
, ,, I0.32a अमोघैः सूर्यसंकाशैः VI. 51.15c अमोघोऽयं महावाणः VI. 22.27c अमोघो ह्येष सर्वेषाम् VII. 22.42a अम्ब केनात्यगाद्राजा II. 72.29a अम्ब पित्रा नियुक्तोऽस्मि II. 4.35a अम्ब मा दुःखिता भूत्वा II. 39.34 अम्बरं वा रसातलम् VI. 8.8d अम्बरं विलिखन्निव IV. 41.2gd अम्बरस्थ इवांशुमान् VII. 34.24d अम्बरस्थं विबभ्राजे V. I.7IC अम्बरं सागरोपमम् VI. 4.II5b ,, ,, , I07.5Id अम्बरात्पुण्यसंक्षये V. 54.24b अम्बरीष इति ख्यातः I. 61.5c अम्बरीष: प्रशुश्रुकात् I. 70.4Id अम्बरीषमिदं वचः I. 61.17b अम्बरीषमुवाच ह I. 62.2Id अम्बरीषस्तु राजर्षिः I. 61.24a अम्बरीषस्य पुत्रोऽभूत् I. 70.42a
,, , II. II0.33a अम्बरीषस्य यज्ञेऽस्मिन् I. 62.20c अम्बरीषोपमं दीप्तम् IV. 67.7c अम्बरीषो महामतिः II, II0.32d अम्बरे वायुपुत्रस्य V. I.59c
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