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यहाँ यह उल्लेख करना भी, उदाहरणतः, आवश्यक है कि इस ग्रंथ के तीसरे खंड के एक अध्याय में दो हजार से अधिक तीर्थों का उल्लेख और परिचय है। उनके नाम भी छोड़ दिये गये हैं। जिज्ञासु पाठक पुस्तक का अध्ययन करते समय उपयुक्त परिचय और साहित्य यथास्थान देख सकेंगे। इस 'शब्दानुक्रमणिका' में लगभग ७००० शब्द हैं, जब कि ग्रंथ में इससे दूने-तिगुने नये ऐसे वर्ण्य विषय और शब्द हैं, जिनके सम्बन्ध में भारत और भारतीयता से अनुरक्त सभी सम्बद्ध पाठकों या छात्रों को सुपरिचित होना चाहिये । इस 'शब्दानुक्रमणिका' से इस बहद ग्रन्थ की महिमा और गरिमा का स्वस्थ परिचय और संकेत उपलब्ध हो सकेगा । ज्ञातव्य है, 'धर्मशास्त्र का इतिहास' के पाँचों खंडों का मूल्य केवल ६२ रुपये है। इस 'शब्दानुक्रमणिका' का मूल्य भी केवल २.५० रुपये है, किन्तु ग्रन्थ का पूरा सेट खरीदने वालों को हम इसे निःशुल्क प्रदान करेंगे ।
एक निवेदन और । इस ग्रन्थ के अनुवाद का प्रकाशन एक यज्ञ था, जो सम्पूर्ण हआ। इसमें अनुवादक श्री अर्जुन चौबे ने जो श्रम-साधना की, वह स्तुत्य रहेगी। साथ ही हमारे सम्पादकीय विभाग के सदस्यों, प्रधान सम्पादक श्री रमाकान्त श्रीवास्तव और सहसम्पादक श्री चिरंजीव शर्मा की तत्परता भी उल्लेखनीय है। इस 'शब्दानुक्रमणिका' को प्रस्तुत करने का अधिकांश श्रेय हिन्दी समिति की सम्पादक श्रीमती डाक्टर ऊषा चौधरी को है, जिन्होंने लगन और तत्परता से इस कार्य का सम्पादन किया है। हम अपने सभी ज्ञाताज्ञात सहयोगियों और सहायक बन्धुओं को समिति की ओर से साधुवाद देना कर्तव्य समझते हैं ।
हम एक बार पुनः इस 'शब्दानुक्रमणिका' के माध्यम से हिन्दी के पाठकों को और भारतीय संस्कृति के जिज्ञासुओं और छात्रों को विद्वद्वर काणे की यह महत्त्वपूर्ण कृति, जो एक प्रकार से हिन्दू जाति और धर्म का विश्व-कोश है, सपित करने में प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। हमें विश्वास है, हिन्दी जगत इस महत्त्वपूर्ण प्रकाशन का अधिकाधिक समादर और स्वागत कर हमारे श्रम को सार्थक करेगा।
Potomacombe
राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन हिन्दी भवन, लखनऊ, कार्तिक पूर्णिमा, २०३० वि०
सचिव, हिन्दी समिति
उत्तर प्रदेश शासन
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