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श्रोशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
किसी समय कमल नेत्रा रानी सुन्दरी शयनागार में अपनी मनोहर शय्या पर शयन करेगी अचानक ही वह रात्रि के पिछले प्रहर में ये स्वप्न देखेगी।
(१) जिससे मद च रहा है ऐसा सफेद हाथी, (२) उन्नत स्कंध का धारक नाद करता हुआ बैल, (३) हाथी को विदारण करता बलवान सिंह, (४) दुग्ध से स्नान करती लक्ष्मी, (५) भ्रमरों से व्याप्त उत्तम दो माला, (६) सम्पूर्ण चन्द्रमा, (७) अन्धकार का नाशक (प्रतापी सूर्य) (८) जल में किलोल करती दो मछलियाँ, () दो उत्तम घड़े, (१०) अनेक पद्मों से व्याप्त (सरोवर) (११) रत्न मीन आदि से युक्त विशाल समुद्र, (१२) मणि जड़ित सोने का सिंहासन, (१३) अनेक देवांगनाओं से शोभित सुर विमान, (१४) नागेंद्र का घर, (१५) रत्नों का ढेर, (१६) और निर्धूम अग्नि।
तथा उन्नत देह का धारक पवित्र किसी हाथी को अपने मुख में प्रवेश करते भी वह सुंदरी देखेगी। प्रातःकाल में वीणा ढक्का शंख आदि के शब्दों से और मागधों की स्तुति के साथ रानी पलंग से उठाई जायेगी और शय्या से उठते समय वह प्राची दिशा से जैसा सूर्य उदित होता है वैसी शोभा धारण करेगी। महारानी उठकर स्नान करेगी और सिर पर मुकुट, कंठ में ललित हार, हाथों में कंगन, भजाओं में वाजूबन्ध, कानों में कुण्डल, कमर पर करधनी एवं पैरों में नपुर पहनेगी। तथा अपने स्वामी राजा महापद्म के पास जायेगी और सिंहासन पर उनके बामभाग में बैठकर चित्त में हर्षित हो इस प्रकार कहेगी
स्वामिन् ! रात्रि के पिछले प्रहर मैंने स्वप्न देखे हैं कृपाकर उनका जैसा फल हो वैसा आप कहें। रानी के ऐसे वचन सुन राजा महापद्म इस प्रकार कहेंगे
प्रिये ! मृगाक्षि ! जो तुमने मुझसे स्वप्नों का फल पूछा है मैं कहता हूँ तुम ध्यानपूर्वक सुनो जिससे तुम्हें सुख मिलें
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