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श्रेणिक पुराणम्
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ततान परमं तोषं पित्रोः परम संपदा । संसिद्धयौवनारूढो व्यूढशक्तिसमन्वितः ।। १६ ॥ अन्ये पुत्राः शुभास्तस्य शतपंचप्रभाः पराः ।
बभूवुः पुण्यमाहात्म्यादृष्टपुण्य फलोत्तमाः ॥ १७ ॥ इस प्रकार योवन अवस्था को प्राप्त, अत्यंत बलवान श्रेणिक सुन्दरता आदि सम्पदाओं से सम्पन्न था जिसे देख उसके माता-पिता अत्यन्त सन्तुष्ट रहते थे ।।१६।। श्रेणिक के अतिरिक्त महाराज उपश्रेणिक के पाँच सौ पुत्र और भी थे जो अत्यन्त पुण्यात्मा और उत्तमोत्तम शुभ लक्षणों से भूषित थे।॥१७॥
अथ चंद्रपुराधीशः सोमशर्मा महाबली । प्रत्यंत देश संवाक्षी धृतबैरो वलोद्धतः ॥ १८ ॥ मगधेशेन सोपायं साधितश्चन्द्रनायकः । सेवकत्वं समापन्न: स्थितो राज्ये खलाशयः ॥ १६॥ मगधेश्वर संनाशं चितयन् दुष्टमानसः । लब्धोपायस्तदाचक्रे विनाशे मतिमुन्नतां ।। २० ॥ सुवर्णं धनधान्यं च वस्त्रालंकरणं तथा । उपायनकृते चान्यद्रत्नमुक्ताफलादिकं ॥ २१ ॥ अशिक्षितमनौपम्यं दुष्टांश्च वंचनोद्यतम् ।
प्राहिणोत्सोमशर्मा तं मागधं विद्यया कृतम् ।। २२ ।। महाराज उपश्रेणिक के देश के पास ही उसका शत्रु चन्द्रपुर का राजा सोम शर्मा रहता था जो अपने पराक्रम के सामने समस्त जगत को तुच्छ समझता था ॥१८॥ जिस समय महाराज उपश्रेणिक को यह पता लगा कि चन्द्रपुर का स्वामी सोम शर्मा अपने सामने किसी को पराक्रमी नहीं समझता, तो उन्होंने शीघ्र ही उसे अपने अधीन करने का विचार कर अनेक उपायों से उसे अपने अधीन तो कर लिया पर उसे पुनः ज्यों-का-त्यों राज्याधिकार दे दिया ।।१६।। सोम शर्मा जब महाराज उपश्रेणिक से हार गया तो उसको बहुत दुःख हुआ और उसने मन में यह बात ठान ली कि महाराज उपश्रेणिक से इस अपमान का बदला किसी-न-किसी समय पर अवश्य लूंगा ॥२०॥ तदनुसार उसने एक दिन यह चाल की कि सुवर्ण धन-धान्य मनोहर वस्त्र और उत्तमोत्तम आभूषण की भेंट महाराज उपश्रेणिक की सेवा में भेजी उसके साथ एक वीत नाम का घोड़ा भी भेजा। यह घोड़ा देखने में सीधा पर सर्वथा अशिक्षित अतिशय दुष्ट एवं अत्यंत ही धोखेबाज था॥२१-२२।।
दृष्टवा राजगृहाधीशो लेखं सोपायनं पुनः । शंसां चक्र च सोमस्याजानं स्तस्य मनोगतं ।। २३ ॥
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