SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमरसेणचरिउ [ १-२ | ॥२॥ पुणु गोयमुगणहरु णमउ णाणि । जें अक्खिउ सम्मइ जिणह वाणि ॥ ॥ पुणु जेण पयत्थई भासियई । भवउवहितरणपोषणसुहाई पुणु तासु अणुक्कमि मुणिपहाणु । णिय चेयणत्थ तम्मउ सुजाणु ॥३॥ हुय बहुसद्दत्थह सुइणिहाणु । जि इंदुद्धरुणिज्जिउ पंचवाणु ॥ ४ ॥ त्रिष्णाणकलालय पारुपत्त । उद्धरिय भव्व जे सम वि सत्त ॥५॥ संतइय ताह मुणिगच्छणाहु | गय रायदोस संजय साहु ॥६॥ जें ईरिय itraguay | यि झार्णे परमप्पयह (हि) लीणु ॥७॥ तवतेयणियत्तणु [किउ वि] खीणु । सिरिखेमकित्तिपट्टिहिपवीणु सिरि हेम कित्ति जि हयउ णाम । तहु पट्ट वि कुमर वि सेणु णामु ॥९॥ णिग्गंथदयालउ जइवरिट्ठ । जि कहिउ जिणागमभेउ सुठु ॥१०॥ तहु पट्टिणि विट्ठउ बुहपहाणु । सिरि हेमचंदु मर्यातिमिरभाणु ॥११॥ तं पट्टि धुरंधरु वयपवीणु । वर पोमणंदि जो तवहं (हुं) खीणु ॥ १२ ॥ तं पणविवि णियगुर सीलखाणि । णिग्गंथु दयालउ अभियवाणि ॥ १३ ॥ णुपभणामि कह सवणाहिराम | आयष्णहु जा በሪ सद्दत्यराम ॥१४॥ ६० घत्ता गोथम एवें जा कहिय, सेणियस्स सुहदायणि । जा वर्णाचतामणिय, धम्मारसहु तरंगिणि ॥२॥ [ १-३ ] महिवोढि पहाणउ गुणवरिठु । सुरह वि मणविभउ जणइ सुठु ॥१॥ वर तिणिसालमंडिउ पवित्तु । णं इह पंडिउसुरपारपत्तु ॥२॥ रुहियासु वि णामें भणिउ इछु । अरिवणजणाह हियसल्लु कट्टु ॥३॥ जहि सहहि निरंतर जिणणिकेय । पंडुरसुवण्णधय सुहसमेय ॥४॥ हम्म | मणसुह संदायण णं सुकम्म ॥५॥ जत्थ । वणिवर ववहरहि वि जहि पयत्थ ॥६॥ सट्टालसतोरण जत्थ चट्टय चच्चरदाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy