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________________ अमरसेणचरिउ आज्ञा का पालन विवेक पूर्वक करते हुए बताये गये हैं । अमरसेन-बइरसेन कुमारों के बध की राजाज्ञा होने पर भी कुमारों को निर्दोप जानकर वे उनका घात नहीं करना चाहते । फलस्वरूप वे उन्हें अज्ञात स्थान में जाने को कहकर मुक्त कर देते हैं और कृत्रिम सिर ले जाकर राजा को कुमारों के मारे जाने का सन्देश दे देते हैं ( २।६।९-१०, २।८७-१० )। ___ इस प्रसंग से ज्ञात होता है कि विवेक बुद्धि केवल उच्च वर्ण में ही नहीं निम्न वर्ण के लोगों में भो थी। जहाँ जब वे आवश्यक समझते समय-समय पर राजा के साथ कपट-व्यवहार भी करते थे। उनकी अवज्ञा करने में भी वे संकोच नहीं करते थे। यह सब वे केवल राजा की भलाई के दृष्टिकोण से करते थे, स्वार्थ-वश नहीं। कवि ने इस प्रसंग में उनकी दूरदृष्टि का अच्छा परिचय दिया है। आर्थिक स्थिति प्रस्तुत ग्रन्थ में रुहियासपुर नगर की तत्कालीन स्थिति का कवि ने भली प्रकार उल्लेख किया है। प्रथम सन्धि के तीसरे कडवक में बताया गया है कि रुहियासपुर के जिनालय ध्वजाओं से सुशोभित थे। उनकी शिखर पर पीत और पाण्डुर वर्ण की ध्वजाएँ फहराती थीं। भवन तोरणों और अट्टालिकाओं से सहित थे। राजमार्ग चतुष्पथों में विभाजित थे। उनमें कोलाहल रहता था। वहाँ चारों वर्ण के लोगों का निवास था। कहीं कोई दीन-दुःखी दिखाई नहीं देता था। सभी दिव्य भोग भोगते थे । जन-जन में स्नेह भाव था। लोग व्यसनी नहीं थे। सदाचार का इतना अधिक प्रभाव था कि नगर में कहीं चोर, चाड, कुसुमाल, दृष्ट, दुर्जन, क्षुद्र, पिसुन और हठी लोग नहीं थे। बाजार में सोना, चाँदी, पीतल आदि का क्रय-विक्रय भी होता था। स्त्रियाँ भी बाजार आती थीं। मुख मार्जन हेतु पान खाने की प्रथा थो। पान की पीक के रंग से धरती रँगी हुई दिखाई देती थी। महिलाएँ स्वर्णाभूषणों से सुसज्जित रहती थीं। शोल धर्म का वे भली प्रकार पालन करती थीं । सुरक्षा की दृष्टि से नगर के बाहर तीन कोट थे । इस प्रकार नगर के बाजार, महिलाओं के स्वर्णाभूषणों और नगर के भवनों से कवि कालीन समाज की आर्थिक सम्पन्नता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। आधुनिक बैंकों जैसी व्यवस्था उस समय नहीं थी। सुरक्षा की दृष्टि से धन भूमि के भीतर या भण्डारों में रखा जाता था और धन का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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