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अमर सेणचरिउ
९४. सुहु- दुहु कियक में हुति भक्त | १|१३|१४ सुख और दुःख पूर्वोपार्जित कर्मों से होते हैं । ९५. सो साहु इच्छु तुव पडि चलइ | १|१०|१० वह इच्छा अच्छी है जो तीर्थंकर के प्रति होती है । ९६. संजम कर अप्पर पाव मुक्कु । १११७१९ संयम लेकर अपने पाप त्यागो । ९७. संसार-भवण्णव पडिउ जीउ ।
णीसरइ सा विणु जिणधम्म कीउ || १/२०१७
संसार भँवर में फँसा हुआ जीव बिना जैनधर्म धारण किये बाहर नहीं निकलता है ।
९८. संसारि नही अप्पण कोइ । १।१६ १९ संसार में अपना कोई नहीं है ।
९९. संसारु अणंतउ परह चिंत। १।१८।१३ पर की चिन्ता से अनन्त संसार प्राप्त होता है । १००. संसार असारु वि मणि मुणे | २/९/२५ मन में संसार को असार जानो । १०१. हथकडगमित्त पियमायभाय । १।१७।४
मित्र, माता-पिता और भाई हथकड़ियाँ हैं । १०२. हो लोयहु थी भेउ ण दिज्जइ । ३|१३|१ स्त्रियों को भेद नहीं देना चाहिए ।
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