SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५२ अमरसेणचरिउ इयरु वि तिरिक्ख जोणिहि वराउ । भमिऊण धणउ वणिवरुवजाउ ॥११॥ सो सुरु चवेइ हुउ तासु पुत्तु । भूसणु णामेण पसिद्ध वित्तु ॥१२॥ घत्ता देवागमि पेक्खि वि, चिर भउ लक्खि वि, सो गेहहु चल्लियउ लहु । अमुणते परियणि, जा गच्छइ वणि, ___ चरणि-लग्गुणासप्पु तहुं ॥७-४ ॥ [७-५] विसय-विरत्तु भूसणु विवण्णु । माहेंद-सुरालई सुरु उवष्णु ॥१॥ जणणु वि तिरिक्ख-आवत्त-रुद्दि । वुड्डिउ सुदुक्ख आवत्त-रुद्दि ॥२॥ सुरवइ वि अंगदत्ति हउ राउ। पुणु भोयभूमि जाणेण जाउ। ३॥ पुणु सग्गि पुणु वि चक्कवइ-पत्तु । अहिरामु णामु गुण-गणहं जुत्तु ॥४॥ रायहं सुय-परिणिय सहस-चारि । तहं पुणु विरत्तु मणि-रूव धारि ॥५॥ अहणिसु चितइ सुद्धतरंगु । घरि द्विउ वि अप्पु झावइ अणंगु ॥६॥ पालिवि सावय-वउ सुद्ध-भउ । वंभोत्तरि तियसु परित्तु जाउ ॥७॥ धणयत्तु वि बहु-भव भमि वि आउ। दियवर-गंदण हुउ समरभाउ ॥८॥ पोयणपुरि हि मिठमइ वि मुक्कु । ताएं णीसारिउ सोसदक्खु ॥९॥ वहु सत्थरेहि पढिऊण पत्तु । णिय जणणा लइ सो कंठ सुत्तु ॥१०॥ पाणिउ-पाइ वि जणणोइ रुणु । तेण वि सरु गिय[मुणि]साय भयणु ॥११॥ किं रुवइ ताई भासियउ मज्झु । णंदणु होतउ णिरु सरिसु तुज्झु ॥१२॥ सो णीसरि[गउ]वि विएस आसि । तें रुण्णमि हउं पंथुय-णिसासि ॥१३॥ पत्ता ता तेण पउत्तउ, णविवि णिरुत्तउ, तउ सुउ मइणाउ हउ। ता जणणी-जणणहो, तहं पुणु सयण हो, तुहु अवलोयण-सुक्ख-भउ ॥७-५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy